जसवंत सिंहः वाजपेयी का हनुमान जो एक किताब के चलते बन गया बीजेपी का विलेन

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जसवंत सिंह का राजनीतिक करियर कई उतार चढ़ाव से गुजरा JaswantSingh

अटल सरकार में अपने कैरियर के शीर्ष पर थेपूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. जसवंत सिंह 1960 में सेना में मेजर के पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक के मैदान में उतरे थे. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार में वो अपने कैरियर के शीर्ष पर थे. 1998 से 2004 तक के शासनकाल में जसवंत ने वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालयों का नेतृत्व किया.

जसवंत सिंह का राजनीतिक कैरियर कई उतार चढ़ाव से गुजरा और इस दौरान विवादों से उनका चोली दामन का साथ रहा. 1999 में एयर इंडिया के अपहृत विमान के यात्रियों को छुड़ाने के लिए आंतकवादियों के साथ कंधार जाने के मामले में उनकी काफी आलोचना हुई थी. जसवंत सिंह हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वासपात्र और करीबी रहे. वो ब्रजेश मिश्र और प्रमोद महाजन के साथ वाजपेयी की टीम के अहम सदस्य थे. जसवंत सिंह को एक समय ऐसी स्थिति का भी सामना करना पड़ा जब अगस्त 2009 में उन्हें अपनी पुस्तक ‘जिन्नाः भारत विभाजन और स्वतंत्रता’ में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा करने पर बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया था. दरअसल, अपनी किताब में उन्होंने सरदार पटेल और पंडित नेहरू को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया था, जो आरएसएस पसंद नहीं था.

वसुंधरा राजे को पहली बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनाने में भैरों सिंह शेखावत के साथ-साथ जसवंत सिंह के आशीर्वाद की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. लेकिन बाद में वसुंधरा राजे ने भैरों सिंह को तवज्जो देनी कम कर दी थी. अपने राजनीतिक गुरू का अपमान जसवंत सिंह कैसे सह पाते. इसके अलावा दोनों के बीच रिश्ते खराब होने का एक और कारण वर्चस्व की लड़ाई भी थी. कहा जाता है कि इसी आपसी कलह के कारण वसुंधरा राजे ने भी उनका टिकट कटवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

बता दें कि जसवंत सिंह को दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में 25 जून को भर्ती कराया गया था. उनका मल्टीअर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम के साथ सेप्सिस का इलाज किया जा रहा था. रविवार को सुबह उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया, जिसके बाद उनका निधन हो गया. उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव थी.

 

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ॐॐॐ्ॐॐशान्ति ् शान्ति

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