जयप्रकाश चौकसे का कॉलम: कुछ आलसी, निकम्मे लोगों ने रीति-रिवाज बनाए और मेहनतकश इंसान को इनमें उलझाकर पैसे कमाने लगे

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जयप्रकाश चौकसे का कॉलम: कुछ आलसी, निकम्मे लोगों ने रीति-रिवाज बनाए और मेहनतकश इंसान को इनमें उलझाकर पैसे कमाने लगे Jaiprakashchowksey columnist

Some Lazy, Unprofitable People Created Customs And Started Earning Money By Entangling The Toiling Human Beings In Them.

जवाब मिलता है कि वह कार्टूनिस्ट है। अमीर स्त्री कहती है कि दोनों में कोई फर्क नहीं है। कार्टून विधा के पुरोधा आर के लक्ष्मण मात्र 3 घंटे के लिए दफ्तर आते थे। 2 घंटे तक समाचार पत्र पढ़ते और तत्कालीन समस्या को समझ कर अपना कार्टून बनाते थे। आर के लक्ष्मण का कार्टून संपादकीय महत्त्व रखता था। उनका आम आदमी तंग कोट पहनता है और लगभग गंजा है।

संपदा का असमान वितरण और सहूलियतों पर अल्पतम लोगों का हक ही समस्या को विकराल बना रहा है। दरअसल कोई संस्था या व्यक्ति समस्या सुलझाना ही नहीं चाहता। याद आता है विजय आनंद की फिल्म ‘काला बाजार’ के लिए लिखा शैलेंद्र का गीत- ‘मोह मन मोहे लोभ ललचाए, कैसे-कैसे ये नाग लहराए मेरे दिल ने ही जाल फहराए अब किधर जाऊं, तेरे चरणों की धूल मिल जाए तो प्रभु तर जाऊं’।

 

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विद्वान चौकसे सा कृपया बताएंगे किसी समाज व देश की संस्कृति को संरक्षण व अगली पीढ़ी को संवहन के क्या तरीके हैं?

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