जमीनी ओजोन के बढ़ते खतरे को लेकर चिंता

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दुनिया में वायुमंडल की ओजोन परत के क्षय होने की समस्या से निपटने के लिए तो कई कानून मौजूद हैं, लेकिन धरती की सतह पर ओजोन की बढ़ती मात्रा को रकने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। जमीन पर ओजोन की बढ़ती मात्रा वायु प्रदूषण को बढ़ा रही है। आने वाले समय में इस अदृश्य प्रदूषण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह इंसान और पर्यावरण के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।

हमारी धरती अब जिस नए खतरे से घिर रही है, वह जमीन पर मौजूद ओजोन का खतरा है। 16 दिसंबर, 1987 को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियल शहर में दुनिया के तैंतीस देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसे ‘मांट्रियल प्रोटोकाल’ कहा गया। इस सम्मेलन में यह तय किया गया था कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन के उत्पादन और उपयोग को सीमित किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इस पर बहुत ज्यादा अमल नहीं हुआ...

अगर हमने ओजोन परत की रक्षा नहीं की, तो आने वाले दिनों में और घातक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए हमें धरती के आसपास बढ़ती ओजोन गैस को रोकना होगा। शोध से पता चला है कि जमीनी स्तर पर ओजोन गैस फसलों को नुकसान पहुंचा रही है। इसके कारण 2005 में साठ लाख टन गेहूं, चावल, सोयाबीन और कपास की फसलों का नुकसान हुआ। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर ने एक शोध में पाया कि 2012 से 2013 के बीच नब्बे लाख टन गेहूं और छब्बीस लाख टन चावल की फसलें नष्ट हुई थीं। इसी तरह 2014 में बनारस हिंदू...

 

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