जनसंख्या विस्फोट भारत में एक पुराना मसला है लेकिन ये एक बार फिर सुर्खियों में तब आ गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के भाषण में लाल किले से इसका जिक्र किया. आजादी की 73वीं वर्षगांठ पर देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन्होंने अपने परिवार को छोटा रखा है, वो सम्मान के हकदार हैं और उनकी ये कोशिश देशभक्ति है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 4.4 थी जो 1998-99 में गिरकर 3.6 रह गई. 2005-06 में घटकर 3.6 रह गई और अब 2015-16 में 2.6 है. न सिर्फ पहली बार मां बनने उम्र बल्कि दो बच्चों के बीच अंतर भी दोनों समुदायों में बढ़ी है. इसमें मुसलमानों ने थोड़ा बेहतर अंतर दिखा है.
घटती प्रजनन दर का असर समुदाय की जनसंख्या पर भी पड़ा है. 1991 में मुस्लिम प्रजजन दर 4.4 थी, मुस्लिम आबादी 32.88 फीसदी बढ़ी थी . 2011 में मुस्लिमों की कुल प्रजजन दर 3.6 थी और ये 29.52 फीसदी बढ़े. 10 साल में कुल प्रजजन दर 3.4 पर पहुंच गई औऱ उनकी बढ़त भी घटकर 24.6 फीसदी पर पहुंच गई.शादी में देर और गर्भपात
'बंटवारे के घावों से उबरने में उन्हें वक्त लगा. जमींदारी खत्म होने के बाद कई मुस्लिम परिवार मुश्किल में फंस गए क्योंकि उनकी संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित हो गई. ज्यादातर मुसलमान पढ़ाई से दूर रहे क्योंकि उनको लगता था कि नौकरी करना उनका काम नहीं है . यही वजह है कि ज्यादातर मुसलमानों की पहली पीढ़ी पढ़ाई कर रही है और घर की महिलाएं ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रही हैं.'
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