बांबे हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि उसे पता है कि लियो टॉल्सटाय की 'वार एंड पीस' किताब उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक कृति है। अदालत का यह मतलब भी नहीं था कि यलगार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में पुलिस द्वारा जब्त की गई सभी किताबें आपत्तिजनक थीं।
जस्टिस सारंग कोतवाल ने यह स्पष्टीकरण अपने उस सवाल पर दिया जिसमें उन्होंने बुधवार को मामले के आरोपित वर्नन गोंजाल्विस से पूछा था कि उन्होंने अपने घर पर 'वार एंड पीस' की प्रति जैसी आपत्तिजनक सामग्री क्यों रखी।जज के इस सवाल पर ट्विटर पर हजारों प्रतिक्रियाएं आईं और गुरुवार को पूरे दिन वार एंड पीस हैशटैग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेंड करता रहा। जस्टिस सारंग ने उक्त स्पष्टीकरण तब दिया जब गोंजाल्विस के वकील मिहिर देसाई ने सूचित किया कि उनके मुवक्किल के घर से पिछले साल बरामद किताबों में से...
इस पर जस्टिस सारंग ने कहा, 'मुझे पता है कि टॉल्सटाय की वार एंड पीस लिटरेरी क्लासिक थी। मैं आरोपपत्र के साथ संलग्न पंचनामे से पूरी सूची पढ़ रहा था। यह बहुत ही गंदी हस्तलिपि में लिखी गई थी। मैं वार एंड पीस के बारे में जानता हूं। मैं सिर्फ सवाल पूछ रहा था, लेकिन मेरे कहने का यह मतलब नहीं था कि हर चीज आपत्तिजनक थी।'
इस पर भीमा कोरेगांव मामले में एक सहआरोपित सुधा भारद्वाज के वकील युग चौधरी ने अदालत को बताया कि बुधवार को अदालत ने जिस 'वार एंड पीस' का जिक्र किया था वह बिश्वजीत रॉय द्वारा संपादित निबंधों का संग्रह है जिसका शीर्षक 'वार एंड पीस इन जंगलमहल : पीपुल, स्टेट एंड माओइस्ट' है। इस पर जज ने कहा, 'उसमें वार और अन्य शीर्षक के कई संदर्भ थे। वार एंड पीस का जिक्र करने से पहले मैंने राज्य दमन का भी जिक्र किया था। क्या जज अदालत में कोई सवाल भी नहीं कर सकता?'इस मामले में तंज कसते हुए...
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