चुप्पी का शोर

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दुनिया मेरे आगे: चुप्पी का शोर

अनिल त्रिवेदी कोई खुद को पूरी तरह मुक्त कहने वाला समाज भी अभिव्यक्ति को शत-प्रतिशत सह नहीं पाता। शब्द विचार और भाषा मर्यादा से मुक्त नहीं हो सकते। यह अलिखित सभ्यता है। शिष्टाचार, आचार व्यवहार की मर्यादा भी सभ्यता के विचार से ही उपजी है। क्रोध और अधीरापन, मन की दो स्थितियां हैं जो हमारे आचार और व्यवहार को गहरे तौर पर प्रभावित करती हैं। मानव सभ्यता के पास अभिव्यक्ति का लंबा अनुभव है। किसी के बोलने के लहजे या तौर-तरीके से ही लोगों को आमतौर पर अंदाजा हो जाता है कि बोलने वाला व्यक्ति कैसा है। हमारी...

परेशान है कि कोई सवाल तो नहीं उठा रहा है! कई बार लोग इसलिए भी सवाल नहीं उठाते कि व्यवस्था सुनती नहीं और कई बार सवाल इसलिए भी नहीं उठते कि आपके पास कोई जवाब ही नहीं है। व्यवस्था को बोलना कम और सुनना-समझना ज्यादा चाहिए। पर आजकल व्यवस्था निरंतर बोलती रहती है और सुनती-समझती कम है। लोगों की चुप्पी व्यवस्था की पहली पसंद है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी को संविधान में मूल अधिकार माना गया है। पर लोगों को सुनना-समझना और बिना बोले लोक कल्याण के कामों को बिना रुके, बिना थके करते रहना, यह व्यवस्था अब...

 

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