चुनाव आयोग की ओर से लागू आदर्श आचार संहिता के मुताबिक़, चुनाव प्रचार के दौरान न तो धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है और न ही धर्म, संप्रदाय और जाति के आधार पर वोट देने की अपील की जा सकती है.
1987 में महाराष्ट्र विधानसभा की विले पार्ले सीट पर उप-चुनाव हो रहा था. मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस के उम्मीदवार प्रभाकर काशीनाथ कुंटे और निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. रमेश यशवंत प्रभु के बीच था, डॉ. रमेश प्रभु को बाल ठाकरे की पार्टी शिव सेना का समर्थन था.उस समय शिव सेना को एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं मिली थी लेकिन शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे खुद डॉ. रमेश प्रभु के लिए चुनावी सभाओं के जरिए वोट मांग रहे थे.
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के ख़िलाफ़ डॉ. रमेश प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की लेकिन 11 दिसंबर 1995 को सुप्रीम कोर्ट ने यह अपील ख़ारिज कर दी और बॉम्बे हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट की ओर से बाल ठाकरे का मामला राष्ट्रपति को भेजा गया, उस समय राष्ट्रपति थे केआर नारायणन. मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर उस समय डॉ. मनोहर सिंह गिल थे और उनके साथ जेएम लिंग्दोह और टीएस कृष्णमूर्ति चुनाव आयुक्त थे.
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