प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर का दौरा किया. इस अवसर पर उन्होंने अलीगढ़ के ताला उद्योग की चर्चा करते हुए इसकी सराहना की.अलीगढ़ की पहचान पूरे देश में 'तालों के शहर' के नाम से ही है. कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन की वजह से लॉक इंडस्ट्री का कामकाज पूरी तरह से ठप था, लेकिन अब जब कामकाज शुरू हुआ है तो उसके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं. यह इंडस्ट्री चीन से आ रहे सस्ते माल, कच्चे माल की भारी कीमत जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रही है.
अंग्रेजों के जमाने से जेलों में अलीगढ़ के ग्लैमराइज्ड आयरन पैड लॉक लगाए जाते हैं. इनकी खासियत ये है कि पावर कोडिंग के साथ हैंड मेड होते हैं. जड़ाई के साथ लीवर व स्प्रिंग पीतल की होती है. ये सिर्फ अलीगढ़ में ही निर्मित होते हैं. अलीगढ़ में लिंक, हरीसन, बजाज मोबाज, कोनार्क, रामसन, जैनसन, प्लाजा, सिगमा आदि कंपनियों या ब्रैंड के ताले बनाए जाते हैं. यही नहीं सेफ व तिजोरी के लिए प्रतिष्ठित कंपनी गोदरेज के लिए भी यहीं से ताले बनकर जाते हैं.
डिस्ट्रिक गजेटियर के अनुसार अंग्रेजों के शासन में पिछली यानी बीसवीं सदी में अलीगढ़ में हर साल करीब 2.76 लाख रुपये मूल्य के 5 लाख ताले बनते थे. इससे प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने साल 1926 में यहां एक वर्कशॉप स्थापित किया जिसमें शिल्पकारों को आधुनिक तरीके से ताला बनाने की ट्रेनिंग दी जाने लगी. अगले दशकों में हाल यह हो गया कि अलीगढ़ जिले के हर घर में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता था जो किसी न किसी तरह से ताला इंडस्ट्री से जुड़ा हो.
जानकार कहते हैं कि अब हैंडमेड तालों की मांग नहीं रह गई है, मशीन मेड तालों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. चीनी उत्पादों की फिनिशिंग बेहतर होती है, क्वालिटी भी अच्छी होती है और वे काफी कम कीमत पर मिल जाते हैं. चीन के ताले भारत से करीब 40 फीसदी सस्ते होते हैं. चीन में अलीगढ़ से ज्यादा सुविधाएं हासिल हैं और वहां की इंडस्ट्री को सरकारी प्रोत्साहन भी अच्छा मिलता है. यही नहीं ताइवान और कोरिया के ताले भी बाजार में आ रहे हैं.चीन से आ रहे ताले असल में नई टेक्नोलॉजी के हैं.
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