कई देशों में भारत के राजदूत रहे राकेश सूद कहते हैं कि ईरान में चार दिनों के भीतर मोदी सरकार के दो-दो कैबिनेट मंत्रियों के जाने को दो तरीक़ों से देखा जा सकता है. राकेश सूद कहते हैं,"राजनाथ सिंह मॉस्को से लौटते वक़्त तेहरान पहुंचे और विदेश मंत्री एस. जयशंकर मॉस्को जाने से पहले ईरान गए. दोनों एयरफोर्स के विमान से गए थे. ऐसे में मॉस्को से सीधे नई दिल्ली या नई दिल्ली से सीधे मॉस्को नहीं जा सकते. बीच में कहीं न कहीं तो रुकना था. दोनों ने तेहरान को चुना.
राकेश सूद कहते हैं, ''ईरान, चीन, रूस, पाकिस्तान और तुर्की मध्य-पूर्व में साथ आते दिख रहे हैं. चीन तो ईरान और पाकिस्तान में कई बड़ी परियोजनाओं पर काम भी कर रहा है. रूस भी मध्य-पूर्व में अमरीका के ख़िलाफ़ अहम ताक़त है. मध्य-पूर्व में रूस और चीन की लाइन अलग नहीं है. पाकिस्तान, तुर्की और ईरान भी इसी लाइन पर हैं. दूसरी तरफ़ भारत को ईरान से बहुत अच्छी ख़बर नहीं मिल रही. भारत ईरान में चाबहार प्रोजेक्ट को अब भी उस तरह से ज़मीन पर नहीं उतार पाया है.
आयशा ने कहा, ''यहां तक कि पाकिस्तान ने अमरीका-तालिबान वार्ता में अहम भूमिका निभाई लेकिन पाकिस्तान को अमरीका से मिलने वाली सारी आर्थिक मदद बंद हो चुकी है. पाकिस्तान अमरीकी गठबंधन में 9/11 के बाद शामिल हुआ था. हालांकि लोगों का कहना था कि पाकिस्तान मजबूरी में आर्थिक मदद के लिए शामिल हुआ था. ओसामा बिन-लादेन को रखने और तालिबान को समर्थन देने के मामले में पाकिस्तान के पास चुप्पी के अलावा कुछ कहने के लिए नहीं रहा है. अब पाकिस्तान के लिए चीन एकमात्र विकल्प है.
राजनाथ सिंह और एस जयशंकर के तेहरान दौरे को पाकिस्तान, ईरान, रूस, चीन और तुर्की के बनते गठजोड़ के आईने में भी देखा जा रहा है. भारत की चीन, तुर्की और पाकिस्तान से कभी दोस्ती नहीं रही लेकिन रूस तो भारत का दोस्त रहा है और ईरान से भी अच्छे संबंध रहे हैं. ऐसे में भारत की यह चिंता लाजिमी है कि ईरान और रूस से अपने संबंधों को ख़राब न होने दे. अभी लद्दाख में सरहद पर भारत और चीन की सेना आमने-सामने है. पूरे विवाद में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटाया जाना भी एक कारण है.
एक तरफ़ ईरान और चीन की क़रीबी बढ़ रही है तो दूसरी तरफ़ भारत ईरान में जिस चाबहार प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुंचाना चाहता था वो लटकता दिख रहा है. मध्य-पूर्व के देशों में ईरान और तुर्की ही कश्मीर के मसले पर खुलकर सामने आए थे. चीन से तनाव के बीच भारत के लिए यह बहुत ही अहम है कि वो किन देशों के साथ आए. मध्य-पूर्व में भारत के लिए चीन से मुक़ाबला करना धीरे-धीरे और मुश्किल होता जा रहा है.
Jab matlab hota hai to?America se koi India ko concrete assurance nahi meela hoga china ke khilaf?
Did you asked Trump and Netanyahu before running to Iran?Trump will be angry as he can save you.🙃
Sanghi kutte kahan gye jo isi Iran k khelaf apne trump abba k sath khade the
चारों तरफ दुश्मनों ने घेरा, कोई पुराना दोस्त वापस ढूंढ रहा है। बनियों को सबसे ज़्यादा डर लगता है।
Sab Chor Bhai gine jate h is liye
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति।
Iran kbhi nhi bhul skta CAA NRC pe Duggal saab ko bht smjhane ki koshish ki thi, Lekin jnhe internal lg rha tha wo, ab bhi internal hi rhe to behtar hai Hmari sena sanksham hai bs ye darpok neta hai
Awwwww दर्द हुआ ? तू वापस अपने देश इंग्लैंड जा और वह की न्यूज़ पर ध्यान दे।
मराए तो वही जाके
XI cho tea pasand nahi aya
we dumped them when they needed us for Idiot trump, now reaching out when needed.
मोदी के भाई है सिया समुदाय के लोग मोदी के पूर्वज है
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