गांधी विरोधी पंथ का निर्माण: एबीवीपी बोस और भगत सिंह को सावरकर के समकक्ष खड़ा करना चाहती है

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मूर्तियां स्थापित करने वालों के विपरीत जिन्हें ऐतिहासिक तथ्यों की बखूबी जानकारियां हैं, उन्होंने रेखांकित किया कि

वैचारिक आधार पर उन दो देशभक्तों की स्थिति एकदम असंगत है, जिन्हें एबीवीपी सावरकर के समकक्ष बताना चाहती है।

1930 के दशक में सावरकर हिंदू महासभा के साथ थे और उस समय वह अपने आपको आरएसएस से श्रेष्ठ समझती थी। इस सांगठनिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद हालांकि मरणोपरांत एबीवीपी द्वारा किए जा रहे स्तुतिगान में एक वैचारिक संगति है, वह यह कि सावरकर इस विचार के प्रभावशाली समर्थक थे कि भारत हिंदुओं का देश है और यहां सिर्फ हिंदुओं का राज होना चाहिए। दूसरी ओर भगत सिंह और सुभाष बोस दोनों ही हिंदू बहुसंख्यकवाद के एकदम खिलाफ थे। भगत सिंह एक मार्क्सवादी थे, जो कि यह मानते थे कि किसी की व्यक्तिगत पहचान बुनियादी रूप से...

यह सर्वज्ञात है कि सावरकर गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के वैचारिक गुरु थे। सही मायने में महात्मा के प्रति उनकी घृणा इस हद तक व्यक्तिगत थी कि जब जेल में कस्तूरबा गांधी की मौत हुई, सावरकर ने अपने अनुयायियों से कहा था कि वे उनकी स्मृति में बनाए जा रहे कोष में कोई योगदान न करें। दूसरी ओर भगत सिंह का महात्मा का विरोध पूरी तरह से वैचारिक था और यह मार्क्सवादी वामपंथ से आया था, जो कि विभाजनकारी दक्षिणपंथ से एकदम भिन्न था। महात्मा के साथ बोस का संबंध कहीं अधिक जटिल था। कांग्रेस से अलग होने के बाद भी...

एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने इस सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझा, शायद इसलिए क्योंकि वे बौद्धिक बहस के बजाय नारेबाजी करने में सहज महसूस करते हैं। हालांकि दक्षिण पंथ द्वारा इन वामपंथी नेताओं के स्तुतिगान की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय की इस घटना से नहीं हुई है। ऐसा पिछले कई वर्षों से चल रहा है।

 

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Aur subash chandra bose ko prenna Veer sararkar se hi prapt hui hai.

Azadi to subash chabdra bose ne hi dilai hai,, Gandhi ne to kewal aaiyasi ki hai.

ओह गददार का लेख।तेरा जैसा टुचचा इतिहासकार तो हमारा अखवार वाला होगा।लूलू

किसी के विरोध या पक्षी की बात ना होकर देश हित में जो अच्छा हो ऐसे समाज का निर्माण होना बहुत ही आवश्यक है पूरे देश में जितना राष्ट्रवाद बढ़ रहा है उससे ज्यादा राष्ट्र विरोधी लोग भी बढ़ रहे हैं

बोस और भगतसिंह का अपमान है,विरोध होना चाहिए,फार्वर्ड ब्लाक और क्म्युनीस्ट पार्टी को अन्दोलन करना चाहिए ।

जब कायरो को वीर बोला जाएगा तो यही होगा

अखबार की खबर है या कांग्रेस की दलाली ?

तो कौनसा बुरा काम कर रहे है आज़ादी के लिए शहीद हुए उनको भूल जाए

आप भगत सिहँ जी का गलत प्रचार कर रहे हैं, उनका पूरा परिवार आर्यसमाज को मानने वाला था, भगत सिहँ महर्षि दयानंद के विचारों से बहुत प्रभावित थे, उनकी पढाई भी आर्यसमाज द्वारा संचालित डीएवी विधालय हुई थी

Mafi veer kabhi bhagat Singh ki barabri nahin kar sakta

एबीवीपी सभी देशभक्तों का सम्मान करती है चाहे वह सावरकर चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह सुभाष चंद्र बोस लाल बाल पाल झांसी की रानी शिवाजी महाराणा प्रताप जैसे अनन्य भारत माता की कोख से पैदा हुए सभी महापुरुषों का देशभक्तों का विद्यार्थी परिषद सम्मान करती है

रात को सूरज कभी निकल ही नहीं सकता है। फिर बोस और भगत सिंह के बराबर सावरकर? क्या खाकर खड़ा होगा अब ? जबकि तब (आजादी के आन्दोलन के समय) तो खड़ा हो ही नहीं सका।

Link kholne se pehale hee samjh Jana chaheeye thaa ki ye deemagee ulti kisne ki hogee..

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