ग़ालिब के अनसुने और मज़ेदार क़िस्से - BBC News हिंदी

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मिर्ज़ा ग़ालिब ने क्यों कहा- ये तारीख़ ग़लत हुई तो मैं सर फोड़ कर मर जाऊंगा. Ghalib MirzaGhalib

फ़ुग़ाँ अज़ ज़माना-ए-ग़द्दारे, आह अज़ रोज़गार-ए-नाहंजारे!इस वादी-ए-हौलनाक की हवा फ़ितना-अंगेज़ है, इस का आब सराब, इस की राहत जुज़्व-ए-जराहत, इस की राफ़त सर्माया-ए-सदाक़त,हर दम महफ़िल-ए-सुरूर से सदा-ए-मातम उठाता है. फूल इधर खिला, उधर गिर पड़ा. लाला लिबास-ए-रंगीन में यही दाग़ दिल पर रखता है.क्या अजब गर आसमाँ दर-पए-आज़ार है. भला इस से क्या तवक़्क़ो'-ए-आसूदगी जिस का ख़ुद गर्दिश पर मदार है.

जो ख़ुसरो के बाद मुल्क-ए-सुख़न का ख़ुसरो-ए-मालिक-रिक़ाब था, उस का नामा-ए-उम्र तै हुआ. जो मैदान-ए-सुख़न-वरी का शहसवार था, उस का रख़्श-ए-ज़िंदगी पै हुआ.

 

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