फ़ुग़ाँ अज़ ज़माना-ए-ग़द्दारे, आह अज़ रोज़गार-ए-नाहंजारे!इस वादी-ए-हौलनाक की हवा फ़ितना-अंगेज़ है, इस का आब सराब, इस की राहत जुज़्व-ए-जराहत, इस की राफ़त सर्माया-ए-सदाक़त,हर दम महफ़िल-ए-सुरूर से सदा-ए-मातम उठाता है. फूल इधर खिला, उधर गिर पड़ा. लाला लिबास-ए-रंगीन में यही दाग़ दिल पर रखता है.क्या अजब गर आसमाँ दर-पए-आज़ार है. भला इस से क्या तवक़्क़ो'-ए-आसूदगी जिस का ख़ुद गर्दिश पर मदार है.
जो ख़ुसरो के बाद मुल्क-ए-सुख़न का ख़ुसरो-ए-मालिक-रिक़ाब था, उस का नामा-ए-उम्र तै हुआ. जो मैदान-ए-सुख़न-वरी का शहसवार था, उस का रख़्श-ए-ज़िंदगी पै हुआ.
कोण है ye mulla
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।