वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षकगणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रेडियो, टेलीविज़न से लेकर विभिन्न कार्यक्रमों में देशभक्ति के बहुत से गीत सुनने को मिलते रहते हैं. जिनमें कुछ गीत ऐसे हैं जिनका इतिहास काफी पुराना है और जो बरसों बाद भी लोकप्रिय बने हुए हैं.यह गीत फ़िल्म 'आनंद मठ' में आज़ादी के सात बरस बाद 1952 में आया. लेकिन इस गीत की रचना सुप्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार बंकिमचंद्र बंदोपाध्याय ने 7 नवम्बर 1876 को की थी.
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा साल 2002 में किए गए एक सर्वेक्षण में तो यह 'वंदे मातरम' गीत, विश्व के दस सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में दूसरे पायदान पर आया था.फिल्मों में देशभक्ति गीतों की बड़ी शुरुआत का श्रेय कवि प्रदीप को जाता है. जिन्होंने सबसे पहले फ़िल्म 'बंधन' में 'चल चल रे नौजवान' गीत लिखा.
राजा मेहंदी अली ख़ान के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफ़ी, ख़ान मस्ताना ने गाया था और ग़ुलाम हैदर ने इसका संगीत दिया था. साल 1954 में प्रदर्शित फ़िल्म 'जागृति' के इस गीत को प्रदीप ने लिखा भी और खुद ही गाया भी. इसका संगीत हेमंत कुमार ने दिया था. "एक दिन प्रदीप जी सुबह सवेरे समुद्र किनारे घूम रहे थे तब उन्हें एक पंक्ति सूझी - 'जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी'. प्रदीप जी के पास उस समय कोई कागज़ नहीं था. सो उन्होंने अपनी जेब में रखी सिगरेट की डिब्बी निकालकर उसी पर ये पंक्तियाँ नोट कर लीं. उसके बाद बैठकर उन्होंने यह गीत पूरा किया."
"तब मैंने कहा अच्छा मैं और आशा दोनों इसे गा देंगे. लेकिन पंडित जी इसी बात पर अड़े रहे कि मैं अकेली ही इसे गाउँ. तब मैंने इसके लिए हाँ की. इसकी धुन बनी जिसे मैंने पूरी तरह मुंबई से दिल्ली तक के सफर के दौरान ही सुना."
सब लोग, भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट सरकार को बदलने में लगे रहे हैं। महा-भ्रष्ट जजों को भी तो देखो, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोबारा किए गए फैसलों को निचली कोर्ट ही बदल देती है, तो सोचो, ये जज खुद ही कानून, नियम तोड़ने वाले सबसे बड़े अपराधी, विश्वासघाती और दलाल ही हैं। मेरा Pinned Tweet देखो
Is bar desh jwan v Kisan dono ek sath jashn mnayege dono hi desh ki Aadhar taqat hai
Kisan ekta zindabad
मैं अपने देश का हरदम सम्मान करता हूँ, यहाँ की मिट्टी का ही गुणगान करता हूँ, मुझे डर नहीं है अपनी मौत से, तिरंगा बने कफ़न मेरा, यही अरमान रखता हूँ।
विचार आसान था,गरीब परिवारों की पहचान कर उनके बैंक खातों में पैसा दें। इससे भारत के गरीब को सीधे बैंक खातों में ₹72,000 मिलेंगे - राहुल गांधी आपके पिताजी के भी ऐसे विचार थे कि गरीब को एक रुपये भेजता हूँ तो उसे 15 पैसे मिलते है । 85 पैसे का गोलमाल का खेल देश जानता है🙏🙏
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