रिपोर्ट में आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि अदालतों में आने वाले नए मामलों की तुलना में मामलों को निपटाने की दर बहुत कम है. और इससे लंबित मामलों का ढेर ऊंचा होता जा रहा है. 2019 में पर्यावरण से जुड़े करीब 35 हजार अपराध दर्ज किए गए थे. सात हजार से ज्यादा मामलों की पुलिस जांच चल रही है और करीब 50 हजार मामले अदालत में सुनवाई पूरी होने और फैसले का इंतजार कर रहे हैं.
अभी तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश में 2019 और 2020 के बीच वन्यजीव अपराधों की संख्या में गिरावट आई थी. इसके बावजूद भारत में हर रोज दो मामले दर्ज किए जाते हैं. कुल वन्यजीव अपराधों के 77 प्रतिशत मामले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में दर्ज किए गए. जिन राज्यों में ऐसे अपराध बढ़े उनमें गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य भी बताए जाते हैं. मामलों की कछुआ चाल पर डाउन टू अर्थ का कहना है,"एक साल में मौजूदा बैकलॉग खत्म करने के लिए अदालतों को हर रोज 137 मामले निपटाने होंगे.
अगर थोड़ा पीछे जाएं तो इस निराशाजनक सिलसिले का पता चलता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो का डाटा बताता है कि 2016 और 2017 के बीच पर्यावरणीय अपराधों में आठ गुना वृद्धि हुई थी. एनसीआरबी के अपराध डाटा के मुताबिक 2016 मे पुलिस ने 4,732 पर्यावरणीय अपराध दर्ज किए थे. 2017 में ये मामले बढ़कर 42,143 हो गए. करीब 30 हजार मामले तो तंबाकू कानून के थे. उसकी तुलना में वायु और जल प्रदूषण के 36 मामले ही दर्ज हो पाए. जबकि एक सच्चाई यह भी है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में ही है.
अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि अगर जंगलों, संरक्षित वनों, अभ्यारण्यों और आरक्षित क्षेत्रों में अवैध कटान, अवैध खनन, अवैध निर्माण, अवैध शिकार, वन उत्पाद और जानवरों के अंगों की तस्करी आदि गैरकानूनी और अपराध माना जाता है, तो फिर कुदरती लैंडस्केप और पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अत्यंत नाजुक तानेबाने को छिन्नभिन्न करने वाले और कई संवेदनशील प्राकृतिक हलचलों को ट्रिगर कर देने वाले कथित निर्माण को क्या कहेंगे.
विकास कही जाने वाली वो चीज आखिर किस कीमत पर हासिल होती है, यह छिपी बात नहीं हैं. कुदरती तबाहियों से हम जानते हैं, इसीलिए बात सिर्फ शहरों के प्रदूषण, गंदगी और कूड़े के ढेर, वाहनों के शोर, हाईजीन, पेयजल, सैनिटेशन, सीवेज आदि की नहीं है, बात पहाड़ों, नदियों, जंगलों और उनके जीव-जंतुओं और वनस्पतियों और जंगल में रहने वाली जनजातियों और आदिवासी समुदायों के अस्तित्व की भी है. इसीलिए अनापशनाप विकास की होड़ के बीच बार बार समावेशी विकास पर जोर देने की बात की जाती रही है.
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।
स्रोत: Dainik Jagran - 🏆 10. / 53 और पढो »
स्रोत: DW Hindi - 🏆 8. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: DW Hindi - 🏆 8. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »