क्या खत्म हो रहा है देश में जर्मन चांसलर का दबदबा | DW | 29.03.2021

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चांसलर मैर्केल को अब अपने माफी मांगने के फैसले का बचाव करना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी ही पार्टी के कुछ मुख्यमंत्री अपने राज्यों में इन फैसलों को लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं. Merkel AngelaMerkel Germany COVID19 CoronaVirusDE

सरकारें सब कुछ सोच समझकर करती हैं, इसलिए कभी गलती नहीं करतीं. चांसलर अंगेला मैर्केल ने पिछले हफ्ते जब एक फैसले को पलटने के लिए माफी मांगी तो बहुत से लोगों ने इसे मानवीय समझा. लेकिन बहुत से ऐसे भी हैं जो इसे चांसलर की कमजोरी बता रहे हैं. हालांकि ईसाई बहुल जर्मनी में ईस्टर से पहले सख्त लॉकडाउन का फैसला चांसलर का अकेले का फैसला नहीं था. यह 16 प्रांतों के मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर लिया गया था लेकिन इस बैठक का नेतृत्व वही कर रही थीं, इसलिए यदि फैसला गलत था तो उसके लिए वही जिम्मेदार थीं.

चांसलर मैर्केल को अब अपने माफी मांगने के फैसले का बचाव करना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी ही पार्टी के कुछ मुख्यमंत्री अपने राज्यों में इन फैसलों को लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं. चांसलर ने शुरू से कोरोना के मामले पर पारदर्शिता और तकनीकी अधिकारियों यानि डॉक्टरों और संक्रमण विशेषज्ञों से राय लेने की नीति अपनाई है. राजनीतिक फैसले तथ्यों पर आधारित होने चाहिए लेकिन अक्सर राजनीतिक मजबूरियों से प्रेरित होते हैं.

शर्त सिर्फ एक है कि सत्ताधारी न तो निरंकुश सोच वाला राजनीतिज्ञ हो और न ही बदले की आग में जलने वाला इंसान. सवाल पूछने पर उसके बदले उसके समर्थक आप पर टूट न पड़ें, और सरकारी तंत्र आपको विलेन बनाना न शुरू कर दे. सारे इंसान गलती करते हैं और इसमें चांसलर या राजनीतिज्ञ या बड़े पदों पर बैठे अधिकारी कोई अपवाद नहीं हैं, क्योंकि वे भी इंसान हैं. डिजीटल युग ने उनके लिए भी फैसले लेने के समय को कम दिया है और फैसला लेने के लिए जरूरी मुद्दों को बढ़ा दिया है. और उस पर विपक्ष, मीडिया और मतदाताओं का दबाव.

ये सारा विवाद देश की लोकतांत्रिक संरचना का विवाद भी है. मैर्केल के पास ये विकल्प है कि वे संसद में बहुमत होने के कारण नया कानून बनाकर केंद्र सरकार को और अधिकार दे दें. लेकिन उन्हें ये भी पता है कि कई मुद्दों पर उन्हें संसद के ऊपरी सदन बुंडेसराट की सहमति लेनी होगी, जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है. उनका सामना फिर उन्हीं मुख्यमंत्रियों से होगा.और ये फिलहाल दिखने लगा है.

कुल मिलाकर सरकारें और सरकारों को चलाने वाले लोग भी परेशान हैं. एक ओर मतदाता है जो महीनों के लॉकडाउन के बाद सारा धीरज खो बैठे हैं, तो दूसरी ओर केंद्र सरकार और डॉक्टर हैं जो महामारी के फैलने पर ऐसी स्थिति में नहीं आना चाहते कि वे लोगों का इलाज न कर सकें. और सबसे बढ़कर परेशान कर रखा है फार्मेसी कंपनियों ने जो जरूरी मात्रा में टीकों की सप्लाई नहीं कर रहीं. एक बार सब को कोरोना रोधी टीके लग जाएं तो स्थिति थोड़ी सामान्य होगी. राजनीतिक विवाद भी घटेगा. तबतक अंगेला मैर्केल के जाने का भी वक्त आ जाएगा.

 

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