शेन वॉर्न दुनिया भर के बल्लेबाज़ों को चकमा देने के लिए जाने जाते रहे. आज उन्होंने दुनिया को चकमा दे दिया. यह कुछ अलग तरह का खेल था. उन्होंने गेंद फेंक दी और मैदान छोड़ कर चल दिए. मौत को भी जैसे खेल बना डाला. क्रिकेट की दुनिया शोक में डूब गई. हालांकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शेन वॉर्न की शुरुआत बहुत मामूली ढंग से हुई थी. सिडनी में उन्होंने भारत के ख़िलाफ ही पहला टेस्ट खेला था और रवि शास्त्री और सचिन तेंदुलकर ने उनकी जमकर धुनाई की थी.
बेशक, उनकी एक आलोचना यह की जाती रही कि उन्होंने ज़्य़ादातर विकेट श्रीलंका के मैदानों में लिए. लेकिन इस आलोचना का भी अर्थ नहीं है. मुरलीधरन अपनी तरह के अजूबा गेंदबाज रहे और क्रिकेट में यह बहस हमेशा चलती रही कि वॉर्न महान या मुरलीधरन. बेशक, अपने अनिल कुंबले इनसे कुछ ही पीछे थे और उन्होंने भी 600 से ज्यादा टेस्ट विकेट लिए थे. लेकिन इस त्रिमूर्ति ने नब्बे के दशक के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना दबदबा कुछ इस तरह बनाया कि क्रिकेट में स्पिन गेंदबाज़ी को नए सम्मान के साथ देखा जाने लगा.
ऐसे माहौल में नब्बे के दशक में भारत में कुंबले, श्रीलंका में मुरलीधरन और ऑस्ट्रेलिया में शेन वॉर्न ने तस्वीर बदलनी शुरू की. अचानक हमने पाया कि यह तेज़ गेंदबाज़ नहीं, बल्कि स्पिनर हैं जो क्रिकेट का रुख़ बदल रहे हैं.शेन वॉर्न निस्संदेह इनमें सबसे विशिष्ट थे- वे सबसे प्रयोगधर्मी स्पिनर रहे. वे लेग स्पिनर रहे, लेकिन गेंदों में विविधता पैदा करने में उनका सानी नहीं था. उनकी लेग ब्रेक, फ्लिपर, उछाल का इस्तेमाल, बॉल को ड्रिफ्ट कराने का कौशल- ये सब जैसे किसी कला के अन्यतम रूप थे.
आ गई सपा सरकार ना मानो तो खुद सुन लो ||
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