74वें स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण करते वक्त हम सबका ध्यान उन अमर बलिदानियों की ओर जाना स्वाभाविक है जिन्होंने हर गांव, गली, मोहल्ले, कस्बे और शहर में अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई। कितने अत्याचार, कितनी यातनाएं, कितनी कुर्बानियां उन बलिदानियों और उनके परिवारों ने सहीं, आज हमें और खासकर हमारी नई पीढ़ी को इसका भान नहीं है। विडंबना यह है कि न कोई बताता है और न ही उनके बारे में पढ़ाया जाता है। नि:संदेह गांधीजी ने स्वतंत्रता-संग्राम का नेतृत्व किया, लेकिन स्वतंत्रता के विमर्श में जो भाषाई...
क्या किसी को चित्तू पाण्डेय, मंगल पाण्डेय, रानी लक्ष्मीबाई की सहचरी झलकारीबाई, रानी चेन्नमा, अल्मोड़ा के शहीद किशनसिंह बोरा, राजस्थान के लाडूराम, मध्य प्रदेश के तात्या भील, राजस्थान के सागरमल गोपा, झारखंड के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, बिहार के शहीद रामफल मंडल, हैदराबाद के कोमाराम भीम, हिमाचल के पहाड़ी गांधी कहे जाने वाले बाबा कांसीराम, ओडिशा के 12 वर्षीय शहीद बाजीराउत आदि के नाम भी ज्ञात हैं? ऐसे नाम अनगिनत हैं, पर उनमें से तमाम गुमनाम से हैं। धन्य हैं हमारे इतिहासकार जिन्होंने असली इतिहास न कभी...
स्वतंत्रता की वास्तविक समझ विकसित कैसे होगी? क्या होती है स्वतंत्रता? कभी इस पर गंभीरता से विचार किया गया? अधिकतर सिद्धांतकार इसे व्यक्ति और राज्य के मध्य शक्ति संतुलन के पश्चिमी चश्मे से देखते हैं, लेकिन स्वतंत्रता बहुआयामी अवधारणा है जिसमें व्यक्ति, समुदाय, समाज, राज्य और विश्व समाहित हैं। ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने का सपना 1947 में पूरा हुआ, लेकिन वह तो अंग्रेजी गुलामी से मिली मुक्ति थी। स्वतंत्रता हमें क्यों चाहिए थी? हमें कहां और किधर जाना है? क्या हासिल करना है? इन सवालों पर...
नई शिक्षा नीति में प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में करने से मोदी ने मैकाले की अंग्रेजियत में मट्ठा डाल दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की है। नई शिक्षा नीति में प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत मातृभाषा में करने तथा मौलिक चिंतन को प्रोत्साहन देने जैसे अनेक प्रयोग कर मोदी ने मैकाले द्वारा बोई गई अंग्रेजियत की जड़ में मट्ठा डालने का काम किया है। आगामी पीढ़ी को उसके चंगुल से निकाल कर स्वतंत्र देश, स्वतंत्र परिवेश और स्वतंत्र संस्कृति की आधारशिला पर स्वतंत्रता का आनंद उठाने और नए समाज एवं सशक्त राष्ट्र का निर्माण करने का अवसर देना अभूतपूर्व देश सेवा...
इतिहास वर्णित पराधीनता कंटकों के समान थी, जो जनविद्रोह के परिणामस्वरूप नष्ट हुई परन्तु, आज की राष्ट्र की स्वतंत्रता विषैले पुष्प के समान हो गयी है जो सुन्दर तो है पर दोषपूर्ण है। जनविद्रोह असंवैधानिक हो गया है, सरकार का आम जनता से कोई लगाव नहीं।
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शुभकामनाएं आपकोहै सर विवेकाधिकारकीआड़ में घोरस्वार्थीमनमानीकरने की स्वतंत्रता की।विधिशासनकेस्थानपर व्यक्तिशासनचलाने की।मेरेसंवैधानिक,संविधिकअधिकारों को निष्क्रिय,उपेक्षितकरने,अपनेदायित्वकर्तव्यनिर्वहन को सीमितवर्गलोगोंतक सिमेटनेकी।नेताओं,अफसरों,अमीरों,बदमाशों को आजादीशुभकामनाएं!
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