क्या होती हैं रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर और एसएलआर | DW | 04.10.2019

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भारतीय रिजर्व बैंक ने 2019 में लगातार पांचवी बार रेपो रेट कम की है. रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर और एसएलआर - ये होते क्या हैं और इनसे आम जनता पर क्या असर होता है, जान लीजिए.

4 अक्टूबर को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की समीक्षा पेश की. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने इस वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी से 6.1 फीसदी कर दिया है. रिजर्व बैंक ने इसी के साथ रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कमी कर दी है. अब रेपो रेट 5.40 प्रतिशत की जगह 5.15 प्रतिशत पर आ गई है. रेपो रेट में साल 2019 में यह लगातार पांचवी कटौती है. 2019 में ही रेपो रेट 135 बेसिस पॉइंट कम हो गई है. रिवर्स रेपो रेट की दर 4.90 प्रतिशत रखी गई है.

जब किसी व्यवसायिक बैंक के पास पैसे की कमी होती है तो वह रिजर्व बैंक के पास जाकर कर्ज लेता है. रिजर्व बैंक ये कर्ज एक ब्याज दर पर देता है. इस ब्याज दर को रेपो रेट कहते हैं. बैंक जब रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं तो वे रिजर्व बैंक को सरकारी बॉन्ड बेचते हैं. रिजर्व बैंक रेपो रेट के आधार पर एक निश्चित राशि तय करता है जिस कीमत पर वो उन सरकारी बॉन्ड को बैंक को वापस करता है. रेपो शब्द रीपर्चेज एग्रीमेंट का छोटा रूप है. रीपर्चेज एग्रीमेंट का मतलब है एक ही चीज की दोबारा खरीदने के लिए किया गया एक समझौता.

इसका विपरीत रिवर्स रेपो रेट में होता है. कभी कभी व्यवसायिक बैंकों के पास ज्यादा पैसा होता है. ऐसे में अपने खर्चों की पूर्ति के लिए रिजर्व बैंक उनसे उधार लेता है. ऐसे में व्यवसायिक बैंक रिजर्व बैंक से सरकारी बॉन्ड खरीदते हैं. रिजर्व बैंक इन सरकारी बॉन्ड को वापस लेते समय एक निश्चित ब्याज चुकाता है. इसे रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है. इन दरों को तय करने का अधिकार रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के पास होता है.

सीआरआर जिसे कैश रिजर्व रेशियो या नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है. हर बैंक को अपनी कुल नगद पूंजी का एक हिस्सा हमेशा रिजर्व बैंक में रखना होता है. इस पर बैंकों को कोई ब्याज नहीं मिलती है. ये जमा हमेशा नकदी के रूप में ही होती है. अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में नकदी कम है तो वह सीआरआर को घटा सकती है. इससे बैंक के पास ज्यादा पैसा होगा जिसे वो बाजार में लाएगा. इसके विपरीत अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में नकदी ज्यादा है तो वह सीआरआर को बढ़ा देगा.

एसएलआर यानी स्टैट्यूरी लिक्विडिटी रेशियो जिसका हिंदी में अर्थ वैधानिक तरलता अनुपात होता है. बैंकों को सरकार के पास नकदी, सोने या संपत्ति के रूप में एक पूंजी रखनी होती है. जिससे अगर कभी बड़ी संख्या में ग्राहक किसी बैंक से अपना पैसा निकालें और बैंक मना कर दे तो रिजर्व बैंक के पास जमा उस बैंक के पैसे से ग्राहकों को पैसा चुका दिया जाए. इस पूंजी को बैंक अपने पास भी रख सकते हैं और इससे ब्याज भी कमा सकते हैं. एसएलआर से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित होती है.

 

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मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा होती गई।पूर्व के अविवेकी निर्णय अर्थ व्यवस्था को अभी और रुलायेंगे।

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