क्या वाकई रेमडिसिविर की कमी है या ऑक्सीजन सिलिंडरों की?

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क्या वाकई रेमडिसिविर की कमी है या ऑक्सीजन सिलिंडरों की? पढ़ें प्रियदर्शन का ब्लॉग...

रांची में मेरे एक परिचित का फोन आता है- उनको रेमडिसिविर इंजेक्शन चाहिए. मैं उन्हें जानकारी देता हूं कि नियमों के मुताबिक यह इंजेक्शन सिर्फ़ अस्पताल वाले दे सकते हैं. वे बताते हैं- अस्पताल वाले बोल रहे हैं, बाहर से जुगाड़ करो. कुछ घंटे बाद वे बाहर से जुगाड़ करने में कामयाब हो जाते हैं- बताते हैं कि ब्लैक में उन्हें इंजेक्शन मिल गया है.

सामाजिक संकट को निजी मुनाफ़े के उद्मम में बदलना इस देश का खाता-पीता समुदाय हमेशा से जानता रहा है. उसे मालूम है जितनी प्राणांतक स्थितियां होंगी, उसके माल की क़ीमत उतनी ही बड़ी होगी. लेकिन इस जमाखोरी को परोपकार में बदलने का खेल नया है. दिल्ली से बीजेपी के सांसद गौतम गंभीर एक शाम फैबी फ्लू बांटते नज़र आए.

यानी एक तरफ़ लोगों की जान जा रही है और दूसरी तरफ़ कुछ लोग इसलिए दवाएं और सिलिंडर बचा कर रख रहे हैं कि अगर कभी उनके अपने बीमार पड़े तो यह उनके काम आएगा. या वे इसलिए उन्हें मुफ़्त में बांट रहे हैं कि इससे उनकी राजनीति की दुकान चमकेगी. कोविड की त्रासदी बहुत बड़ी है. उसने हमारे बहुत सारे आत्मीय जनों को छीन लिया है. लेकिन यह त्रासदी इसलिए कुछ और बड़ी हो गई है कि हमने इसे- या किसी भी बीमारी को- रोकने की पुख़्ता व्यवस्था नहीं की. सेहत का पूरा ज़िम्मा या कारोबार निजी क्षेत्र को सौंप दिया जिसकी वजह से कोविड के नाम पर किसी निजी अस्पताल में भर्ती होने वाले शख़्स को बिल्कुल पहले ही दिन कम से कम पचास हज़ार रुपये जमा कराने पड़ते हैं और अगर उसके तीन-चार दिन अस्पताल में कट गए तो तीन-चार लाख रुपये निकल जाते हैं.

 

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अब कांहा गये अनुराग ठाकुर एक हि नारा लगा दो,देश के ' बीमारो ' को ' आॅक्सीजन ' लगा दो

जो अपनी सगी माँ का हालचाल भी सिर्फ चुनाव के समय पूँछता हो , उसे तुम्हारे मरने या जीने से घण्टा फर्क पड़ेगा

ऑक्सीजन के साथ साथ शर्म की भी भारी कमी CovidIndia

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