हाल ही में ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ न्यूज़ एजेंसी जैसी चीन की सरकारी मीडिया ने बड़े फ़ख़्र से एलान किया था कि चीन की एक मालगाड़ी, पिछले मंगलवार को फ़्रांस की राजधानी पेरिस पहुंच गई.चीन की मीडिया ने ये घोषणा भी कर दी कि कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ युद्ध के लिए तमाम मेडिकल साज़-ओ-सामान लेकर ऐसी ही एक और ट्रेन जर्मनी के डुइसबर्ग और स्पेन की राजधानी मैड्रिड भी पहुंचने वाली है.
चीन की मालगाड़ियों के यूरोप के सफ़र पर दुनिया की मीडिया की शायद नज़र नहीं है. लेकिन, ऐसा लगता है कि कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ यूरोप की जंग में चीन की ये कार्गो ट्रेनें लाइफ़लाइन बन गई हैं. पश्चिम के कई विश्लेषक मानते हैं कि इस दौरान चीन की कम्युनिस्ट सरकार का जनसंपर्क और प्रचार तंत्र दिन रात काम में जुटा हुआ है. पिछले ही हफ़्ते चीन ने बांग्लादेश से होने वाले 97 प्रतिशत आयात पर एक जुलाई से बिल्कुल भी टैक्स न लगाने का प्रस्ताव रखा.
चीन ने अपने पुराने साथी, पाकिस्तान में भी 30 अरब डॉलर का निवेश किया है. पाकिस्तान में चीन अपनी बेहद महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशियेटिव योजना के तहत, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना रहा है. बीआरआई को ऐतिहासिक सिल्क रोड का आधुनिक स्वरूप बताया जा रहा है. चीन का ये 'निरंतर और निर्मम विकास' बहुत से देशों के लिए ईर्ष्या का विषय है. और इस कारण से चीन पर दादागीर करने या अहंकारी होने के आरोप भी लगे हैं.
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया के मुताबिक़, डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीका के मित्रदेशों जैसे कि कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कई यूरोपीय देशों को इस बात के लिए मजबूर किया है कि वो चीन की कंपनी हुवावे को अपने यहां 5G तकनीक के ढांचे का विस्तार न करने दे. क्योंकि इससे उनके डेटा की चोरी हो सकती है और सुरक्षा में सेंध लग सकती है. हुवावे वैसे तो एक निजी चीनी कंपनी है. लेकिन, पश्चिमी देश मानते हैं कि चीन में प्राइवेट कंपनियां भी चीन की कम्युनिस्ट सरकार के नियंत्रण में हैं.
लोवी इंस्टीट्यूट में इस सर्वे की प्रमुख रहीं नताशा क़स्साम कहती हैं, ''अभी हाल के दिनों तक ऑस्ट्रेलिया के ज़्यादातर लोग चीन को एक ऐसे देश के तौर पर देखते थे, जहां आर्थिक तरक़्क़ी के अवसर हैं. लेकिन, अब ज़्यादातर ऑस्ट्रेलियाई, चीन को ख़तरे की नज़र से देखने लगे हैं."चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के क़रीबी माना जाने वाला ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि, ''ऑस्ट्रेलिया के अलावा, कई पश्चिमी देश जैसे कि कनाडा और स्वीडन में भी चीन के प्रति नकारात्मक सोच बढ़ गई है.
प्रोफ़ेसर अशोक स्वैन तर्क देते हैं कि पश्चिमी देशों के बीच इस बात को लेकर दुविधा है कि चीन से कैसा बर्ताव किया जाए. चीन का मानवाधिकारों से जुड़ा रिकॉर्ड और विरोध के स्वरों को दबाने की उसकी नीति को लेकर पश्चिमी देश हमेशा से ही चिंतित रहे हैं.
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MustListen_Satsang | Sadhna TV 01-07-2020 | Episode: 1649 | Sant Rampal Ji live Lord Kabir aajtak AbeShinzo
WTO ban china
ग्लोबल टाइम्स के बाद दूसरा नंबर बीबीसी का ही है चीन की चाटने में
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