के नेतृत्व में सर्वत्र आनंद और स्वर्णमय असम होगा। उन्हें पीछे करके उन हिमंत बिस्वा सरमा को, जिनका कभी भाजपा मंत्री पद से इस्तीफा मांगती थी, को राज्य की कमान सौंपने को कोविड संक्रमण की दूसरी लहर से मची अफरातफरी, बंगाल और उत्तर प्रदेश पंचायत चुनावों के नतीजों से पैदा हुए राजनीतिक हालात की मजबूरी में किसी क्षत्रप के दबाव के आगे झुकने का भाजपा का आपद धर्म माना जाए या भविष्य में अब भाजपा नेतृत्व अन्य राज्यों में भी दूसरे दलों से आने वाले बड़े नेताओं के प्रति भी ऐसी नरमी दिखा सकता है। कारण जो भी हो...
कुछ इसी तरह भाजपा के प्रति पूरी तरह समर्पित होने के बावजूद मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन जैसे नेताओं जो पार्टी का अल्पसंख्यक चेहरा रहे हैं, को महासचिव पद की जिम्मेदारी कभी नहीं दी गई। अपवाद स्वरूप भाजपा के शुरुआती दिनों में कुछ समय के लिए वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सिकंदर बख्त को जरूर महासचिव बनाया गया, बाद में उन्हें पार्टी का शोभायमान उपाध्यक्ष पद जरूर दिया गया। इसी तरह नकवी और शाहनवाज को भी सरकारों में मंत्री तो बनाया गया, लेकिन संगठन में उपाध्यक्ष ही बनाए गए। इसी तरह भारतीय जनसंघ के...
इसलिए जब असम में हिमंत बिश्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया गया है तो इसे भाजपा की परंपरागत नीति से हटना इसलिए माना जाएगा क्योंकि यहां पार्टी ने दोबारा चुनाव जीता है और उसके निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के खिलाफ कोई भी आरोप या नाराजगी नहीं थी। बल्कि कभी जब हिमंत कांग्रेस में थे और तरुण गोगोई की सरकार में मंत्री थे भाजपा उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनके इस्तीफे और जांच की मांग किया करती थी। इसलिए अगर पार्टी नेतृत्व उन्ही हिमंत को मुख्यमंत्री बना रहा है, जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और...
उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य की छटपटाहट भी 2022 के चुनावों में रंग ला सकती है। तो महाराष्ट्र में नारायण राणे भविष्य में खम नहीं ठोकेंगे इसकी क्या गारंटी है। झारखंड में भाजपा से बाहर गए और फिर लौटे बाबूलाल मरांडी भी भविष्य के बारे में सोच सकते हैं। गोवा में तो भाजपा की सरकार ही कांग्रेस से आए नेताओं के बलबूते चल रही है और मनोहर पर्रिकर की गैर-मौजूदगी में अगले साल चुनावों में इनमें से एक दो दावेदार तो पैदा हो ही सकते हैं। प.
हिमंत को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा नेतृत्व ने कई निशाने साधे हैं। पहला तो यह कि असम में अब अगले पांच सालों तक राज्य सरकार को किसी तरह की कोई चुनौती भीतर और बाहर से मिलने की संभावना लगभग खत्म हो गई है। दूसरा ये कि हिमंत का प्रभाव भाजपा असम के बाहर मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम समेत पूरे पूर्वोत्तर में इस्तेमाल करते हुए आसानी से अपना प्रभाव विस्तार कर सकेगी। मुख्यमंत्री बनने के बाद हिमंत पूर्वोत्तर में एक बड़े क्षत्रप बनकर उभरेंगे। हालांकि सिक्किम और नगालैंड की परिस्थिति असम एवं अन्य राज्यों से...
पहले बात पेमा खांडू की। पेमा खांडू के पिता दोरजी खांडू अरुणाचल में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे और उनकी हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उसके बाद राज्य की उन्हें तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मंत्री बनाया गया। 17 जुलाई 2016 को पेमा खांडू अरुणाचल की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस के 43 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री पेमा खांडू पूरी सरकार के साथ भाजपा के सहयोगी दल पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए। लेकिन 21 दिसंबर 2016 को पेमा खांडू को छह...
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