कुरुक्षेत्र: सियासत के आकाश में धूमकेतु की तरह चमके थे अमर सिंह

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कुरुक्षेत्र: सियासत के आकाश में धूमकेतु की तरह चमके थे अमर सिंह AmarSingh samajwadiparty yadavakhilesh VinodAgnihotri7

देता है, अमर सिंह उस राजनीतिक शैली के पुरोधा थे। वो भी तब जबकि उनके पास महज एक नेता मुलायम सिंह के उत्तर प्रदेश में सीमित जनाधार और एक पार्टी जो एक राज्य तक ही सीमित थी, की ताकत और समर्थन था। जबकि अमित शाह के पास भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी और देश के सत्ता तंत्र की ताकत, देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी समेत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी अनुषांगिक संगठनों के जनाधार और संगठन बल का समर्थन...

इसी दौर में भारतीय राजनीति में तीन ऐसे नेताओं का उदय हुआ जो विचारधारा पर अड़ने से ज्यादा व्यवहारिक राजनीति को तरजीह देते हुए सियासी समझौते, सौदे और लचीलेपन के हिमायती थे। भाजपा में प्रमोद महाजन, कांग्रेस में अहमद पटेल और समाजवादी पार्टी में अमर सिंह इस बदलती राजनीति के प्रतीक बनकर उभरे। 1996 से 2004 तक अटल आडवाणी युग की भाजपा और एनडीए सरकार में प्रमोद महाजन ने संघ निष्ठ भाजपा में व्यवहारिक राजनीति की वो बुनियाद रखी जिस पर आज नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सियासत की इमारत खड़ी है। इसी तरह इसी दौर...

हालांकि अमर सिंह के सपा में बढ़ते वर्चस्व से न सिर्फ मुलायम परिवार बल्कि सपा के तमाम वरिष्ठ नेता जो समाजवादी और लोकदलीय वैचारिक पृष्ठभूमि के थे, बेहद असहज हो गए और इनमें से कुछ को सत्यपाल मलिक, के.सी.

चाहे उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास परिषद के जरिए देश भर के नामी उद्योगपतियों को लखनऊ बुलाकर राज्य में निवेश का वातावरण तैयार करना हो या सैफई महोत्सव जैसै आयोजन शुरू करवाकर बॉलीवुड के सितारों की पूरी बारात को इटावा के उस गांव को पूरे देश में चर्चित करवा देना हो जहां सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पैदा हुए। लखनऊ से लेकर दिल्ली और मुंबई के पांच सितारा होटलों में अमर सिंह और उनके मित्रों द्वारा दी जाने वाली शानदार दावतों को कौन भूल सकता है जहां सियासत के सारे झगड़े टंटे भूलकर बड़े-बड़े नेता अभिनेता और...

इन तमाम सियासी घटनाओं के बाद अमर सिंह फिर सियासी बियाबान में खो गए। अखिलेश ने उन्हें सपा से निष्कासित कर दिया लेकिन वह राज्यसभा के असंबद्ध सदस्य बने रहे। बिगड़ती सेहत और साख दोनों ने कभी सियासत के इस चतुर महारथी को मौजूदा दौर में अप्रासंगिक कर दिया। लेकिन कमजोर होते इस सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी नजदीकी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बढ़ानी शुरू कर दी। मोदी सरकार को अपनी तरफ से एकतरफा समर्थन और संघ की तारीफ करके अमर सिंह ने अपने सियासी पुनर्वास की कोशिश तो...

लेकिन इन छत्रपों के स्वार्थों के टकराव और भाजपा की महत्वाकांक्षाओं ने इस प्रयोग को महज 10-11 महीनों में ही असफल कर दिया था। लेकिन 1990 के बाद जब नरसिंह राव सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण का वैश्विक एजेंडा लागू किया तो भारतीय राजनीति में भी विचार पर बाजार हावी होने लगा और विचार पर अड़े रहने वाले नेताओं ने या तो खुद को एक सीमा तक समझौता परस्त बना लिया या फिर वह राजनीति से बाहर होते चले...

 

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samajwadiparty yadavakhilesh VinodAgnihotri7 परमात्मा उन्हें अपने चरणों में स्थान दें यही प्रार्थना है । ओम शांति ।

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