दिल्ली टूरिज्म की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार 1193 ईस्वी में दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक की पराजय के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस मीनार का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया. ऐबक ने इस मीनार को एक विजय स्तंभ के रूप में स्थापित करने का निश्चय किया. 1200 ईस्वी में उन्होंने इसके निर्माण का कार्य आरंभ किया. लेकिन, ऐबक अपने जीवनकाल में केवल इस मीनार का आधार ही पूरा कर पाए थे.कुतुबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इस मीनार के निर्माण को आगे बढ़ाया. उन्होंने मीनार की तीन मंजिलों का निर्माण कराया.
कुतुब मीनार के निर्माण की अंतिम कड़ी फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में पूरी हुई. 1368 ईस्वी में उन्होंने इस मीनार की पांचवीं और अंतिम मंजिल का निर्माण कराया. फिरोजशाह तुगलक ने मीनार की ऊंचाई को 73 मीटर तक पहुंचाया. इससे यह मीनार और भी भव्य और दर्शनीय बन गई. इस अंतिम मंजिल के निर्माण के साथ ही कुतुब मीनार पूर्ण हुई और यह दिल्ली के आकाश में एक शानदार मीनार के रूप में खड़ी हो गई. कुतुब मीनार न केवल भारत की सबसे ऊंची ईंट की मीनार है. बल्कि, यह स्थापत्य कला का एक बेजोड़ उदाहरण भी है.
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