दृश्य एक : एक चैनल की रिपोर्टर पूछती है : ‘किसान आंदोलन को कुछ बाहरी तत्वों ने ‘हाइजैक’ कर लिया है। शरजील इमाम और खालिद की रिहाई की मांग का किसानों के आंदोलन से क्या सबंध?’ - ‘हमें कौन ‘हाइजैक’ कर लेगा? कोई घुस गया होगा, तो निकाल देंगे।’ किसान यूनियन के नेताजी बड़ी कार में बैठे-बैठे लाइन देते हैं और कार फुर्र! दृश्य दो : एक घेरे में बैठे कुछ किसान। किसानों के बीच एक बड़े हुक्के की ‘नै’ घूम रही है। बीच में एक रिपोर्टर जिज्ञासा करती है : आप लोग जो इस हुक्के को एक साथ पी रहे हैं, आपको कोरोना का डर...
रिपोर्टर उनके कष्ट बता रही थी, लेकिन किसान अपने आप में एकदम मस्त दिखते थे। सातवां दृय : सड़क पर पंगत लगा कर सैकड़ों किसान बैठे हैं। थर्मोकोल की पत्तलों में रोटी दाल सब्जी खा रहे हैं। परोसने वाले परोस रहे हैं। कैमरे वाले कवर कर रहे हैं। यह आंदोलन की एक नितांत निर्द्वंद्व और स्वायत्त दुनिया है। फिर एक दिन ‘आधे दिन’ का भारत बंद! चैनलों के लिए ‘आधा अधूरा’! कहीं बंद, कहीं खुला! बंद के दिन ही सरकार किसानों के विचार के लिए दस बिंदुओं वाला प्रस्ताव भेजती है। कई एंकर संशोधनों पर चर्चा कराते हैं, लेकिन...
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