देश के अलग-अलग राज्यों से 26 नवंबर से ही किसान यहां जुटना शुरू हो गए थे, जिसमें ज़्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से आए थे. ये किसान केंद्र सरकार के लाए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. हालांकि, सरकार का लगातार कहना है कि ये क़ानून किसानों के हित में हैं.
इन लोगों का कहना है कि लंबे वक़्त से जारी विरोध-प्रदर्शनों के चलते उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है. इन लोगों में गणतंत्र दिवस के दिन प्रदर्शनकारियों द्वारा कथित रूप से किए गए राष्ट्रीय ध्वज के "अपमान" को लेकर भी ग़ुस्सा था. सिंघु बॉर्डर पर एक महिला ने भाषण में कहा, "लाल क़िले पर हुई घटना की हम निंदा करते हैं. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इससे हमारा विरोध-प्रदर्शन ख़त्म हो जाएगा. मीडिया ऐसे दिखा रहा है जैसे कि सभी किसान अपने घरों पर जा रहे हैं. ये हक़ीक़त नहीं है. केवल वो लोग वापस लौट रहे हैं जो कि ख़ासतौर पर ट्रैक्टर परेड में हिस्सा लेने आए थे. लेकिन, कई लोग आ भी रहे हैं."
Thank you BBC news.
पूरी news है हिंसा सरकार ने नहीं बल्कि so-called बिके हुए किसानों ने की थी। Agenda कोई कानून बदलने का नहीं आराजकता फैलाने का है ।।
हालात कुछ भी हों, काले कानून निरस्त होंगे और अब हमें राष्ट्र के लिए किसानों के साथ मिलकर दूसरा स्वाधीनता संग्राम भी लड़ना है। हमें औपनिवेशिक झूठन चाटना छोड़कर ऐसा भारत बनाना है जहाँ किसी को खालिस्तानी कहना सम्मान की बात होगी! नक्सलियों से वार्ता होगी और युवाओं को नौकरी मिलेगी!
हमारे पत्रकार भाई MandeepPunia के लिए आवाज़ उठाओ, किसानों की आवाज़ बुलंद करने के आरोप में दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है ReleaseMandeepPunia
Congress has been a political party that has nothing to do with the nation and the love of the nation, politics has been its goal to break the integrity and unity of India among the castes and religions, it has been to fight and exploit the parties in the interest of power
मजे मैं होंगे जैसे पहले थे आराम से खा पी रहे होंगे और दूसरे दंगे की तैयारी कर रहे होंगे
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