एक घंटा पहलेख़ून के धब्बे वाले जूते. कई लोगों के अंतिम संस्कार. क़ब्रिस्तान, समाधि-लेख और दीवार में बना वो सुराख.
पिछले साल अगस्त में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के बाद कश्मीर में लॉकडाउन लागू किया था. नवंबर महीने में जब हुज़ैफ़ा पंडित को पुणे जाने का मौक़ा मिला, तो वे वहाँ चले गए, क्योंकि कश्मीर के लॉकडाउन को झेलना उनके लिए मुश्किल भरा हो रहा था.हालाँकि इससे लॉकडाउन से जुड़ी उनकी पुरानी यादें लौट आईं. उनके मुताबिक़ इन यादों का बोझ उनके दिमाग़ पर है और हर लॉकडाउन उन्हें ऐसी ही यादों में ले जाता है.
कश्मीर के अनंतनाग में पतिगारु क्लिनिक चलाने वाले नासिर बताते हैं, "मुश्किल यह है कि प्रत्येक लॉकडाउन के अलग-अलग मायने हैं. यहाँ दो एक्टर हैं- एक इसे थोपने वाला और दूसरा इसे झेलने वाला. पहले तो लॉकडाउन लागू करने वाला सिस्टम ही होता था, इस बार कोरोना महामारी भी है. बहुत सारे मरीज़ कोविड-19 के चलते अवसाद में चले गए हैं. बीते तीन महीनों में हमलोगों के पास दो हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए हैं. हमलोग ऑनलाइन साइकियाट्रिक क्लीनिक भी चलाते हैं.
जम्मू कश्मीर कॉलिशन ऑफ़ सिविल सोसायटी के प्रोग्राम कार्डिनेटर खुर्रम परवेज़ के मुताबिक़ लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष और क्षेत्र में डेमोग्राफ़िक बदलाव की आशंका के चलते लोग चिंता में हैं. उन्होंने बताया, "लॉकडाउन के बीच हमलोग टूट जाते हैं. यहाँ तो एक के बाद एक लॉकडाउन की स्थिति रही है. 2008 से ही मैं लॉकडाउन देख रहा हूँ. वे लॉकडाउन कुछ महीनों तक चला करते थे. इसके बाद एक या दो साल का गैप आ जाता था. हमलोग इस बीच में राहत ले पाते थे. अगर चीज़ें बेहतर नहीं हुईं, तो स्थिति बदतर होगी."
उन्होंने बताया, "बचपन से आसपास कोई लोगों को मरते हुए देख चुका हूँ. कोई नहीं सोचता कि मुझे यह नहीं देखना चाहिए था." वे याद करते हुए बताते हैं कि पाँच साल की उम्र में उन्हें पुलिस वाले ने रायफ़ल के बट से सिर के पीछे मारा था. वे तब लाल चौक पर काम करने वाले अपने पिता के साथ थे.पंडित ने बताया, "जिस पुलिसवाले ने मारा, उसने ना तो माफ़ी मांगी और ना ही रुका. मैं रो पड़ा था. काफ़ी चोट लगी थी. पुलिस वालों की कार्रवाई मेरे बचपन का नियमित हिस्सा रहा.
लेकिन घाटी में मौतों की संख्या कम नहीं हुई. पंडित के मुताबिक़ वे नहीं चाहते कि लोगों की जान जाए, उन लोगों में पड़ोसी और कजिन भी हो सकते हैं. जिस सड़क पर उनका घर है, उसी सड़क पर क़ब्रिस्तान भी है और कई मौक़ों पर वे क़ब्रिस्तान में बने समाधि लेखों पर कविताएँ पढ़ने चले जाते हैं.
AnsariNousad1 Story of fake encounters in Kashmir by narendrmodi SaveKashmiries
कश्मीर हमरा है,, कश्मीरी हमारे है,, कश्मीरी दोनो साइड से मुश्किल में है,, पाकिस्तानी उन्हें इंडियन कह कर मारते है और इंडियन उन्हें पाकिस्तानी कह कर,, कश्मीर सबको चाहिए कश्मीरी नही,
फारुख के साथ चीन मे रहे👍 चीन बहुत ही अच्छा देश है वह खातिरदारी मे कमी नहीं करता👍
समाधान कुछ तो होगा?
मानसिक स्थिति ...विचलित ...हाथ पैर के जोड़ से ही... जुडती ..जब जंग हर भाव में... फिर... कैसे बाकि रहे... ऊपरी धरा ...वो भी ...तो ...किरदार है ...समूह का...
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: Amar Ujala - 🏆 12. / 51 और पढो »
स्रोत: NDTV India - 🏆 6. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: द वायर हिंदी - 🏆 3. / 63 और पढो »