भारत प्रशासित कश्मीर में 13 मई को श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए मतदान होगा. कश्मीर में रहने वाले कई कश्मीरी पंडितों की इस चुनाव को लेकर अलग-अलग राय है.
टिक्कू कहते हैं, ''आप ये सुनकर हैरान हो जायेंगे कि नब्बे के दशक में जब कश्मीरी पंडितों ने पलायन करना शुरू किया तो उसके बावजूद कश्मीर में 32 हज़ार कश्मीरी पंडित रहते थे. लेकिन इस समय ये संख्या 800 से भी कम हो गई है. उसका एक कारण तो सुरक्षा है. दूसरा ये कि आज तक कश्मीरी पंडितों के आर्थिक उत्थान के लिए कुछ नहीं किया गया."
नीरजा मट्टू को इसके बाद से कोई ख़ास बदलाव नज़र नहीं आ रहा है. उनका कहना है कि श्रीनगर में बन रही स्मार्ट सिटी की वजह से कई जगहें तो ख़ूबसूरत बन गईं, लेकिन कुछ दिन पहले श्रीनगर में एक पुल न होने के कारण कई बच्चे पानी में डूब गए.'सियासत हमें बांट रही है' एक हल्की मुस्कुराहट के साथ वो कहती हैं, "हमने सब कुछ अब ख़ुदा के ऊपर छोड़ा है. जैसे थे वैसे ही हैं. मैंने कभी कश्मीर में रहकर अपने आप को बदलने की कोशिश नहीं की कि मैं कश्मीरी पंडित नज़र न आ सकूं. मुझे भरोसा था अपने पड़ोसियों पर जिनकी वजह से मैं आज तक यहां बैठी हूँ."
अनंतनाग के चितरगुल गांव के रहने वाले बालकृष्ण ने भी कश्मीर की वादियों से अपने आप को अलग नहीं किया है.
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