श्यामापद बनर्जी बताते हैं कि जब वह आठ साल के थे, तो पिता की सीख पर उन्होंने पहला पौधा लगाया था. उनके शब्दों में, तब से ही उन्हें पौधे लगाने का 'नशा' हो गया. चाहे जो भी मौसम हो, वह हर दिन इसी तरह पौधे लगाने निकल पड़ते हैं.श्यामापद बनर्जी इस उम्र में भी कड़ी धूप, सर्दी और बारिश की परवाह किए बिना रोजाना कम-से-कम एक पेड़ लगाते हैं. उनके इस हरित अभियान ने इलाके की तस्वीर बदल दी है. इस इलाके में गर्मी में तापमान 50 डिग्री से ऊपर पहुंच जाता है.
श्यामापद बनर्जी हर रोज इसी तरह कड़ी धूप, सर्दी और बारिश की परवाह किए बिना हाथ में कुदाल थामे पौधे लगाने के लिए निकल जाते हैं.श्यामापद डीडब्ल्यू से कहते हैं,"पिता ने आठ साल की उम्र में ही पेड़ लगाने का महत्व समझाया था. उस उम्र में पहला पेड़ लगाने के बाद मुझे इसका नशा हो गया. ये पेड़ हर मौसम में सिर उठा कर धूप, बारिश और तूफान से लोगों और फसलों की रक्षा करते हैं. ये इंसान के असली साथी हैं."
यह पूछे जाने पर उनका नाम पेड़ दादा कैसे पड़ गया, श्यामापद बताते हैं,"पेड़ लगाते-लगाते पहले इलाके के बच्चे मुझे इस नाम से पुकारने लगे. उनकी देखा-देखी दूसरे लोग भी इसी नाम से पुकारने लगे." यह तस्वीर सारेंगा इलाके ही है. यहां ऐसी कोई सड़क या तालाब नहीं, जिसके किनारे श्यामापद बनर्जी के लगाए पेड़ ना हों.श्यामापद अपने दो बेटों और परिवार के साथ रहते हैं. उनकी दशकों की अथक मेहनत का नतीजा है कि सारेंगा इलाके में कोई भी ऐसी सड़क या तालाब नहीं है, जिसके किनारे उनके हाथों से लगाए पेड़ सिर उठाए ना खड़े हों.
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