एससीओ समिट में पीएम मोदी क्यों नहीं गए, नहीं जाने के क्या हैं मायने

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भारत एससीओ का सदस्य है. एससीओ समिट आज से कज़ाखस्तान में शुरू हो गया है. पुतिन से लेकर शी जिनपिंग तक समिट में पहुँचे हैं लेकिन नरेंद्र मोदी इस समिट में शामिल नहीं हो रहे हैं. मोदी के इस फ़ैसले को कैसे देखा जा रहा है?

एससीओ में चीन, पाकिस्तान, रूस और भारत समेत नौ सदस्य देश हैं. एससीओ को बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है.

एससीओ बैठक में शामिल होने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के पीएम शहबाज़ शरीफ़ कज़ाख़स्तान पहुंच चुके हैं.दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर जेएनयू में मध्य एशिया और रूसी अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार संजय पांडे से बीबीसी ने यही समझने की कोशिश की.

माना जा रहा है कि एससीओ में पीएम मोदी की ग़ैर-मौजूदगी से मध्य एशियाई देशों के नेताओं को निराशा हो सकती है. चेलानी ने लिखा है, ''भारत के अलावा एससीओ के सभी सदस्य चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा हैं. भारत इस परियोजना का विरोध करता रहा है. एससीओ के देशों में भारत ही पूरी तरह से लोकतांत्रिक देश है. एससीओ में चीन की बढ़ती भूमिका भी भारत को असहज कर रही है.''मगर ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, ''अधिकारी ये कहेंगे कि मोदी संसद सत्र के कारण कज़ाख़स्तान नहीं गए पर अतीत में संसद सत्र के दौरान पीएम मोदी विदेश जा चुके हैं. इस समूह में भारत एक तरह से फिट नहीं बैठ रहा है.

प्रोफ़ेसर संजय पांडे ने कहा, ''भारत सोच समझकर एससीओ का सदस्य बना था. लेकिन अब भारत एससीओ को बहुत महत्व नहीं देता है. आने वाले समय में रूस में ब्रिक्स समिट होना है. पूरी उम्मीद है कि वहां प्रधानमंत्री जाएंगे. ब्रिक्स ऐसा समूह है, जहां रूस और चीन के अलावा कई ऐसे देश हैं, जिनकी अपनी पहचान है, स्वतंत्र विदेश नीति है, जैसे साउथ अफ्रीका.''

प्रोफ़ेसर संजय पांडे कहते हैं, ''भारत असहज तो है पर वो इन समूह में बना रहेगा. क्योंकि ये समूह पश्चिम विरोधी तो हैं लेकिन भारत विरोधी ना हो जाएं. भारत की बात वहां तक पहुंचती रहे. एससीओ में कई ऐसे देश हैं, जिनसे भारत के अच्छे संबंध हैं और वो इन संबंधों को बनाए रखेगा. भारत चाहेगा कि ये देश एंटी इंडिया ग्रुपिंग का हिस्सा ना बन जाएं. भारत इससे जुड़ा तो रहेगा. पर पूरी तरह से केंद्रित नहीं रहेगा.

 

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