एक देश, एक चुनाव : ज़रूरी है सभी राज्यों की सहमति...

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विराग गुप्ता का ब्लॉग: एक देश, एक चुनाव; ज़रूरी है सभी राज्यों की सहमति...

देश में अनेक दौर के चुनाव राजनीति की अराजकता को दर्शाते हैं, लेकिन इसे 'एक देश, एक चुनाव' के जादू मंत्र से ठीक नहीं किया जा सकता. पिछले 25 वर्ष से चुनाव आयोग, विधि आयोग, नीति आयोग और संसदीय समिति के प्रतिवेदनों पर इस बारे में बहस होने के बाद केंद्र सरकार ने अब नई समिति बनाने का निर्णय लिया है. आज़ादी के बाद के 72 साल के इतिहास में सही अर्थों में सिर्फ 1957 में ही 'एक देश, एक चुनाव' हो पाए थे, क्योंकि 1952 में हुए आम चुनाव के दौरान तो सभी चुनाव एक साथ होने ही थे.

सभी राज्यों की विधानसभाओं से पारित कराना होगा प्रस्ताव : विधि आयोग ने इस बारे में अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था, जिसमें संशोधनों का भी विवरण दिया गया है. 'एक देश, एक चुनाव' के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ संविधान में भी अनेक बदलाव करने होंगे. संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत खास तरह के संशोधनों के लिए आधे राज्यों की विधानसभाओं का अनुमोदन ज़रूरी है.

'एक देश, एक चुनाव' की आड़ में राष्ट्रपति प्रणाली का एजेंडा : जनता, प्रशासन और राजनीतिक अनुशासन के लिहाज़ से 'एक देश, एक चुनाव' निश्चित तौर पर लाभदायक और स्वस्थ व्यवस्था है, परंतु देश में संसदीय प्रणाली के साथ संघीय व्यवस्था है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने संविधान का बेसिक ढांचा कहते हुए अपरिवर्तनीय बताया है. व्हॉट्सऐप चुटकुलों के अनुसार सांसदों द्वारा प्रधानमंत्री का चयन होता है, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री ने सांसदों को बनाया.

'एक देश, एक चुनाव' पर सरकार ने व्यावहारिक पहल क्यों नहीं की : नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी 'एक देश, एक चुनाव' की बात ज़ोर-शोर से उठाई गई थी, फिर भी इस बारे में व्यावहारिक कदम नहीं उठाए गए. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 14 और 15 में बदलाव कर राज्यों की विधानसभा में एक साल पहले भी चुनाव कराए जा सकते हैं. यदि ऐसा हो जाता, तो BJP शासित हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड राज्यों में आम चुनाव के साथ चुनाव हो सकते थे.

व्यापक चुनावी सुधारों पर बहस और कार्रवाई हो : अप्रासंगिक चुनावी आचार संहिता के दौर में चुनाव आयोग अब भी लकीर का फकीर बना हआ है. इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के दौर में विफल चुनावी व्यवस्था की वजह से ईवेंट मैनेजमेंट बने चुनावों में जनादेश से ज्यादा संसाधनों पर फोकस है. 2014 के आम चुनाव में सरकारी तौर पर 3,870 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन पार्टियों और नेताओं ने 50,000 करोड़ से ज्यादा खर्च किए थे. 'एक देश, एक चुनाव' से इस खर्च पर कैसे लगाम लगेगी...

 

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अगर एक देश और एक चुनाव होता है तो मुझे लगता है की सारी सीट भारतीय जुमला पार्टी की ही आनी है

गुजरात मे राज्यसभा की 2 सीटो पर तो एक दिन चुनाव नहीं करा सकते तो समझ नहीं आता कि पुरे देश मे एक साथ लोकसभा ओर विधानसभाओ के चुनाव कैसे करा पायेन्गे | ये कथनी ओर करनी मे अन्तर क्यों है |

जो बैलेट पेपर से चुनाव कराने से कांपने लगते हैं। वो एक देश एक चुनाव की बात करते हैं। अगर एक देश एक चुनाव सही है। तो फिर एक देश, एक चुनाव, के साथ-साथ जब एक आधार है, तो सभी के लिए एक स्कूल, एक शिक्षा, एक अस्पताल, सभी चीजें सभी के लिए एक समान भी कर दिया जाय। सहमत है तो ठीक है।

इससे ज्यादा जरूरी है देश का विकास और रोजगार

Even one Nation one tax is still not implemented fully aswe can see petrol and diesel not under GST. This should not be highest priority just after election!!

It's is about our money, there should be consensus amount AAM AADAMI not from state government. Let vote for one nation, one election.

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