उम्दा इफ्तार इस बार नहीं होंगे, मस्जिदों से बमुश्किल अजानें आएंगी, वहां इबादत नहीं होगी

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कश्मीर में मौसम-ए-रमजान / उम्दा इफ्तार इस बार नहीं होंगे, मस्जिदों से बमुश्किल अजानें आएंगी, वहां इबादत नहीं होगी Kashmir Ramadan AzmatHirra

डल झील के किनारे दिनभर किसी रोजी का इंतजार करते ये शिकारे वाले यूं वहीं खाली पड़ी बेंच पर नमाज पढ़ लेते हैं। इबादत के लिए इससे खूबसूरत शायद ही कोई दूसरी जगह हो। डल झील के किनारे दिनभर किसी रोजी का इंतजार करते ये शिकारे वाले यूं वहीं खाली पड़ी बेंच पर नमाज पढ़ लेते हैं। इबादत के लिए इससे खूबसूरत शायद ही कोई दूसरी जगह हो।

घाटी में हर दिन इफ्तार की तैयारियां दोपहर से ही कंडूर यानी स्थानीय कश्मीरी रोटी बनानेवाले की दुकान के सामने जमा होती भीड़ से होती थी। कंडूर स्पेशल ऑर्डर लेता था और लोगों को अपनी कस्टमाइज ब्रेड मिलती थी, गिरदा, ज्यादा घी और बहुत सारी खस-खस या तिल वाली। लेकिन इस साल ऐसा माहौल ही नदारद है। मोहम्मद रफीक, पुराने शहर के नवाकदल इलाके में मेवों की दुकान चलाते हैं। कहते हैं लॉकडाउन का छोटे व्यापारियों पर बड़ा असर होगा। खासकर उनपर जिनकी सालभर की कमाई रमजान पर निर्भर रहती है। और क्योंकि रमजान में खानेपीने के सामान की जरूरतें बढ़ जाती हैं तो पैनिक बायिंग और सप्लाय कम पड़ने की भी चिंता है।

डल झील के किनारे बनी हजरतबल श्राइन जो मोहम्मद साहब की पवित्र निशानी मुए ए मुकद्दस का घर भी है इन दिनों बंद कर दी गई है। रमजान के शुरुआती 15 दिनों में 'जूनी रातें' बहुत महत्वपूर्ण थीं क्योंकि, इन्हें चांद रातों के रूप में माना जाता था। उस समय शांत माहौल होने से लोगों में एकजुटता भी दिखती थी।

 

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