उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में एक छोटा सा सरहदी कस्बा है मुनस्यारी, जहां से हिमालय की मशहूर पंचचूली रेंज का भव्य नजारा मिलता है. इस मौसम में यहां पर्यटकों का खूब जमावड़ा भी होता है लेकिन इन दिनों मुनस्यारी से पंचचूली नहीं दिख रही क्योंकि धधकते जंगलों से उठे धुएं ने पूरी पर्वत श्रृंखला पर परदा डाल दिया है. आज हाल यह है कि मुनस्यारी के पास सरहद पर गोरीगंगा बह रही है और उसके ऊपर पहाड़ों पर जंगल धधक रहे हैं.
जानकार कहते हैं कि देश के बाकी हिस्सों की तरह हिमालयी क्षेत्र में भी आग कोई नई या सामान्य घटना नहीं है लेकिन अब आग की घटनाओं का ग्राफ बदल रहा है. फरवरी से जंगलों में आग की घटनाएं शुरू हो जाती है लेकिन मॉनसून के बाद जंगलों की आग की कोई घटना नहीं होती लेकिन 2020 में उत्तराखंड के वनों में गर्मियों के मौसम में आग की जितनी घटनाएं हुई उससे अधिक घटनाएं जाड़ों में हो गई.
एक उच्च वन अधिकारी ने हिमालयी वनों के बारे में समझाते हुए कहा,"उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के वृक्ष अच्छी खासी संख्या में हैं. इस पेड़ की नुकीली पत्तियां साल में दो बार गिरती हैं. जंगलों की आग इन पत्तियों को न जलाए तो यही पत्तियां मिट्टी की अम्लता को बढ़ा कर काफी नुकसान कर सकती है. अक्सर चीड़ की पत्तियों में लगी आग सतह पर रहती है और जल्दी बुझ जाती है लेकिन अगर यह अनियंत्रित होकर फैल जाए तो हानि का कारण बनती है.
सरकार के मुताबिक भारत के 10 प्रतिशत जंगलों में आग की घटनाएं बार-बार होती हैं लेकिन हिमालय में अनियंत्रित आग इसलिए भी चिंता का विषय है कि यहां संवेदनशील ग्लेशियर हैं. क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क के निदेशक संजय वशिष्ठ कहते हैं कि आग की घटनाएं तो पहले भी होती रही हैं लेकिन अब उनका विकराल स्वरूप और बार-बार होना चिंताजनक है. वशिष्ठ ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में लगी आग का हवाला देते हुए कहते हैं कि धरती का तापमान बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
वशिष्ठ के मुताबिक,"हिमालय भारत और पूरे विश्व के लिए विशेष महत्व रखता है. धरती के तीसरे ध्रुव के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र कई दुर्लभ वनस्पतियों, पक्षियों और जंतुओं का बसेरा है. यह जैव विविधता का भंडार है और यहां कई ऐसी प्रताजियां हैं जो इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं, दुनिया में कहीं और नहीं होती. इन्हें एंडेमिक प्रजातियां कहा जाता है. अनियंत्रित आग इस जैव विविधता को खतरा पैदा कर सकती है. भारत ने पेरिस क्लाइमेट संधि में भी यह कहा है कि वह 2030 तक करीब 300 टन कार्बन सोखने लायक जंगल लगाएगा.
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