उत्तराखंड की नैनी झील कैसे तबाही की झील में तब्दील हुई - BBC News हिंदी

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उत्तराखंड की नैनी झील कैसे तबाही की झील में तब्दील हुई

इसी तरह कुमाऊँ के मैदानी इलाक़ों में भी बारिश का रिकॉर्ड टूटा है और पंतनगर मौसम विज्ञान केंद्र में 24 घंटों में 403.2 एमएम बारिश दर्ज की गई है. जबकि अब तक दर्ज आँकड़ों में 10 जुलाई 1990 को सबसे अधिक बारिश 228 एमएम दर्ज की गई थी.

मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक उसके हर एक केंद्र में भारी से अत्यंत भारी रेनफ़ॉल दर्ज हुआ है जो कि एक अभूतपूर्व स्थिति है. हालांकि अब यह स्थिति टल गई है और अब मौसम सामान्य हो जाएगा.वहीं भारी बरसात के बीच नैनीताल की मशहूर नैनी झील के ओवरफ़्लो हो जाने से मल्लीताल में नैनादेवी मंदिर परिसर, मॉल रोड, और तल्लीताल के नया बाज़ार इलाक़े में बाढ़ आ गई और कई दुकानों और घरों में पानी भर गया.

नैनीताल शहर में रहने वाले पर्यावरणविद् और इतिहासकार शेखर पाठक कहते हैं, ''इतिहास में भी नैनीताल के पास इस तरह की एक्सट्रीम प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनीं हैं. 1920-21 में भी इसी तरह की भारी बारिश हुई थी और उससे पहले 1880 में सितम्बर की 14 से लेकर 18 तारीख में भारी बरसात के बाद नैनी झील के ऊपरी छोर की पहाड़ी पर एक बड़ा भूस्खलन आया था. जिसकी चपेट में आकर 155 लोगों की मौत हो गई थी. इस बार की भारी बरसात और बाढ़ ने यहाँ भय का माहौल पैदा कर दिया है.

राहत और बचाव से जुड़ी एजेंसियां बचाव कार्य में लगी हैं और वायु सेना के दो हैलीकॉप्टर भी प्रभावित इलाक़ों में राहत के लिए भेजे गए हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अतिवष्टि प्रभावित क्षेत्रों का हवाई दौरा किया है और लोगों से धैर्य और संयम रखने की अपील की.आमतौर पर मानसून के ख़त्म हो जाने बाद अक्टूबर महीने में इस तरह की भारी बरसात को लेकर पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ मौसम चक्र में हो रहे परिवर्तन का स्पष्ट संकेत हैं.

 

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प्रकृति तेज़ी से अपने को परिवर्तित कर रही है हम अभी तक उसके इस परिवर्तन को समझ नहीं पा रहे हैं या समझने की कोशिश नहीं कर रहे

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