अप्रैल की पहली तारीख़ से ही ईरान और इसराइल के बीच बढ़ी तनातनी के अब मध्य पूर्व के बाहर फैलने की आशंका बढ़ गई है.एक अप्रैल को सीरिया के दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमले के बाद से ही इसकी आशंका जताई जा रही थी. ईरान ने इस हमले के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया था.
भारत ने अपने नागरिकों के लिए ट्रैवल एडवाइज़री जारी की थी और इन दोनों देशों की यात्रा नहीं करने के लिए कहा था. वहीं, जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन के फ़ैकल्टी मेंबर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि ग़ज़ा में जारी इसराइली कार्रवाई के जवाब में हूती विद्रोहियों के लाल सागर में हमले बढ़े.
ईरान के इसराइल पर हमले के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके चिंता ज़ाहिर की और कहा कि क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना महत्वपूर्ण है. वह कहते हैं, "भारत की ओर से इस संकट पर ज़्यादा बयानबाज़ी से बचना भी एक संकेत है कि भारत में भी एक पसोपेश वाली स्थिति बनी हुई है. ये असमंजस वाली स्थिति किसी भी देश की विदेश नीति में चुनौती नहीं बल्कि संकट है. ये मेरी नज़र में भारत के लिए डिप्लोमैटिक क्राइसिस है. क्योंकि भारत की विदेश नीति इस तरह के मसलों में तटस्थता को ज़्यादा देखती है. भारत पूरी तरह से ईरान और इसराइल के बीच फंसा हुआ है.
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