रजनीश यादव/प्रयागराज: अक्सर कहा जाता है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं. जो समाज को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं. फिल्म देखने वाले लोग अक्सर अपनों को फिल्मों में दिए कैरेक्टर की जगह पर रखकर देखते हैं. ऐसे नहीं फिल्मों के माध्यम से हम समाज को एक बड़े स्तर पर बदलाव के साथ एक अच्छा संदेश भी भेजते हैं, लेकिन लगातार फिल्मों में कहीं ना कहीं भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का मजाक बनता दिख जाता है. वर्तमान में भारतीय फिल्मों से भारतीयता गायब होती जा रही है. जो की शोध का विषय बन चुका है.
1990 के दशक के बाद से दिखे व्यापक बदलाव प्रोफेसर अमित शर्मा ने बताया कि 1990 के बाद जब उदारीकरण का दौर आया, उसके बाद से भारतीय फिल्मों पर पश्चिमी सभ्यता की पकड़ मजबूत होने लगी. जिसको भारतीय दर्शक खूब पसंद भी करने लगे. जिसके चलते फिल्मों में जोर-जोर से पश्चिमी संस्कृति को परोसा जाने लगा. उन्होंने कहा कि पीसी जोशी कमेटी 1982 के संस्तुति के बाद से ही फिल्मों में भारतीय परंपराओं को दिखाया जाता था.
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