इतिहास को अब नहीं मिलेगा डॉ. वाकणकर सा बिरला अध्येता, जिन्‍होंने ऐतिहासिक मानचित्रों की पुनर्व्याख्या में जिंदगी खपाई

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इतिहास को अब नहीं मिलेगा डॉ. वाकणकर सा बिरला अध्येता, जिन्‍होंने ऐतिहासिक मानचित्रों की पुनर्व्याख्या में जिंदगी खपाई DrVishnuSridharWakankar SaraswatiRiver RockPaintingsDiscovery

सरस्वती नदी के उद्गम और प्रवाह मार्ग की खोज करने के प्रयासों का जब भी जिक्र किया जाएगा, डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के उल्लेख के बिना अधूरा रहेगा। डॉ. वाकणकर देश के उन गिने-चुने अध्येताओं में से थे जिन्होंने देश के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक मानचित्र की पुनर्व्याख्या करने में जिंदगी खपाई। 1988 में 4 मई को उनके अवसान के बाद से उनका स्थान रिक्त है। किसी भी शख्सियत के जाने के बाद कहे जाने वाले दो शब्द अपूरणीय क्षति उनके मामले में सार्थक सिद्ध हुए हैं।डॉ.

वाकणकर, जिन्हें स्नेह से लोग हरिभाऊ कहा करते थे, ने नदी सभ्यता और हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के समकालीन जीवन की खोज में काफी श्रम किया। मध्यप्रदेश की नर्मदा और चंबल के इलाके में उन्होंने इतिहास की कई परतें उघेड़ीं। उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग, जिससे वे वर्षों तक संबद्ध रहे, के संयोजन में उन्होंने मालवा में व्यापक उत्खनन किया। उन दिनों पुणे के डेक्कन कॉलेज के अलावा मध्यप्रदेश के सागर और उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय ही उत्खनन का काम प्रमुखता से करते थे। मालवा में उज्जैन के गांव...

 

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