आरटीआई के नए नियम सूचना आयुक्तों को सरकार की कठपुतली बनाने की कोशिश हैं

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आरटीआई के नए नियम सूचना आयुक्तों को सरकार की कठपुतली बनाने की कोशिश हैं RightToInformation RTIRules2019 RTIAct ModiGovt सूचनाकाअधिकार आरटीआईनियम2019 आरटीआईकानून मोदीसरकार

12 अक्टूबर को हम सूचना का अधिकार दिवस के तौर पर मना रहे थे, लेकिन सिर्फ 12 दिन बाद हम एक स्वतंत्र सूचना आयुक्त की संस्था के ख़त्म होने का मातम मनाने के लिए मजबूर हो गए. 24 अक्टूबर को केंद्र ने विनाशकारी नए नियमों को अधिसूचित किया.

4. नियम, 21 केंद्र सरकार को किसी अन्य भत्ते या सेवा शर्तों को लेकर, जो अलग से 2019 के नियम में शामिल नहीं किए गए हैं, फैसला करने का पूर्ण अधिकार देता है और इसका फैसला बाध्यकारी होगा.1. साल 2019 का संशोधन कानून और नियम, 2005 के आरटीआई एक्ट के तहत सूचना आयुक्तों को दी गई स्वतंत्रता को नष्ट कर देता है. इस एक्ट के दो अनुच्छेदों में संशोधन करके सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता को खत्म नहीं किया जा सकता है.

5. इन संशोधनों और नियमों को लाने से पहले इससे जुड़े लोगों- सूचना आयुक्तों, राज्यों, नागरिक समाज और सांसदों के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया. यह किसी कानून बनाने से पहले मशविरा करने की 2014 की नीति का खुला उल्लंघन है. इस नीति के तहत सभी कानूनों के मसौदे को टिप्पणी व सुझावों के लिए सार्वजनिक करना जरूरी है. लेकिन इन नियमों के मसौदे को सार्वजनिक नहीं किया गया और कोई राय-मशविरा नहीं किया गया.

अगर व्यवहारिक रुप में देखें तो ज्यादातर मुख्य सूचना आयुक्त ‘आज्ञाकारी’ किस्म के थे, जबकि आरटीआई एक्ट में उनसे स्वतंत्र रहकर काम करने की उम्मीद की गई है. अब तो सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए योग्यता के तौर पर अधीनता और वफादारी पर कानूनी मुहर लग गई है. आयुक्तों को यह स्वतंत्रता काफी सोच-विचार, सलाह-मशविरे, सुनवाइयों के बाद संसद की स्थायी समिति द्वारा दी गई थी.

दूसरे नियमों ने उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में उतना ही वेतन पा रहे नौकरशाहों के समकक्ष बना दिया. आयुक्तों के बीच की बराबरी के कारण कुछ स्वतंत्र एवं साहसी फैसले देखे गए, वो अब नामुमकिन होगी.चौथा नियम केंद्र को सेवारत नौकरशाहों को तीन साल के लिए नियुक्त करने की शक्ति देता है. नियुक्ति की तारीख से उन्हें सेवानिवृत्त माना जाएगा.

इस संशोधन के तहत बनाए गए नियम मूल आरटीआई एक्ट की आत्मा की हत्या करने वाले हैं, जो इस परिपाटी के खिलाफ है कि कोई नियम उस मूल कानून की जगह नहीं ले सकता है या उसका उल्लंघन नहीं कर सकता है, जिसके तहत उन्हें बनाया गया था. इसके अस्तित्व में आने के बाद कुछ आरटीआई विरोधी अफसर आयुक्तों के पद पर बैठे और उन्होंने कई आरटीआई विरोधी आदेश दिए, जिसने सूचना प्राप्त करने के लिए दायर की गई आवेदनों को खारिज करने में विभागों की मदद की.

 

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