आज का शब्द: प्रभंजन और हरिवंशराय बच्चन की कविता- मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?

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आज का शब्द: प्रभंजन और हरिवंशराय बच्चन की कविता- मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- प्रभंजन , जिसका अर्थ है- तोड़-फोड़, नाश, प्रचंड वायु, आँधी, हवा, वायु। प्रस्तुत है हरिवंश राय बच्चन की कविता- मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है ? एक अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? उसी ऐसी घटा नभ में छिपे सब चाँद औ’ तारे, उठा तूफ़ान वह नभ में गए बुझ दीप भी सारे; मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है ? अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? दो गगन में गर्व से उठ-उठ, गगन में गर्व से घिर-घिर, गरज कहती घटाएँ हैं, नहीं होगा उजाला फिर;...

शीश सकते थे उन्होंने सिर झुकाया है; मगर विद्रोह की ज्वाला जलाए कौन बैठा है? अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? चार प्रलय का सब समाँ बाँधे प्रलय की रात है छाई, विनाशक शक्तियों की इस तिमिर के बीच बन आई; मगर निर्माण में आशा दृढ़ाए कौन बैठा है? अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? पाँच प्रभंजन, मेघ, दामिनि ने न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा, धरा के और नभ के बीच कुछ साबित नहीं छोड़ा; मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है? अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? छह प्रलय की रात में सोचे प्रणय की बात क्या...

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