ने अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 साल लंबे 'आतंक के खिलाफ युद्ध' में शामिल होने के देश के फैसले पर खेद प्रकट किया. मंगलवार 21 दिसंबर को उन्होंने इसे"खुद का घाव" और पैसे के लिए किया गया फैसला बताया, न कि जनता के हित में.
लगभग दो दशक लंबे युद्ध में पाकिस्तान की भागीदारी के लंबे समय से आलोचक रहे इमरान खान ने दावा किया कि वह 2001 में निर्णय लेने वालों के करीब थे, जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने 'आतंक के विरुद्ध लड़ाई' का हिस्सा बनने का फैसला किया.'इमरान खान ने इस्लामाबाद में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा,"मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि फैसले के पीछे क्या विचार थे. दुर्भाग्य से, पाकिस्तान के लोगों पर कोई विचार नहीं किया गया.
"ये विचार 1980 के दशक के समान थे, जब हमने अफगान जिहाद में भाग लिया था, जिसे तब 'पवित्र युद्ध' कहा जाता था. हम खुद जिम्मेदार हैं ... जैसा कि हमने दूसरों को अपना इस्तेमाल करने दिया, सहायता के लिए अपने देश की प्रतिष्ठा का त्याग किया और एक विदेश नीति बनाई जो सार्वजनिक हित के खिलाफ थी और पैसे के लिए तैयार की गई."इमरान खान ने 'आतंक के खिलाफ युद्ध' को पाकिस्तान के लिए एक 'खुद का घाव' बताते हुए कहा, 'हम इस परिणाम के लिए किसी और को दोष नहीं दे सकते.
इमरान खान ने इससे पहले भी इसका जिक्र किया है कि 20 सालों के युद्ध के चलते पाकिस्तान को 80,000 से अधिक मौतें और 100 बिलियन डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ.अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के बारे में बात करते उन्होंने कहा कि ये एक बड़ा अत्याचार है कि एक मानव निर्मित संकट पैदा किया जा रहा है, जब ये पता हो कि अफगानिस्तान के खातों और लिक्विडिटी को मुक्त करने से संकट टल जाएगा.
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