अमृतसर से करीब 40 किमी दूर है जल्लूपुर खेड़ा गांव। इस गांव के बीचोबीच बने किले नुमा घर के सामने भीड़ जुटी है। ये घर ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के चीफ और खडूर साहिब सीट के नए सांसद अमृतपाल सिंह का है। मार्च, 2023 में इसी घर के बाहर पुलिसवाले जुटे थे।अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में 23 फरवरी, 2023 को हजारों लोगों की भीड़ अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गई थी। इसके बाद उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो गया। 18 मार्च को अमृतपाल घर छोड़कर फरार हो गए। जांच एजेंसियों के साथ पुलिस उन्हें एक महीने तलाशती रही। 23...
वे बताते हैं, 'संगत चाहती थी कि अमृतपाल चुनाव लड़कर जेल से बाहर आ जाए। सरकार ने उसे धोखे से जेल में डाला है। हमारे नौजवानों को सिख धर्म से अलग किया जा रहा है। अमृतपाल उन्हें दोबारा धर्म से जोड़ने की कोशिश कर रहा है। वो तो पॉलिटिक्स से दूर रहना चाहता था।' तरसेम सिंह के बगल में बैठे अमृतपाल के चाचा सुखचैन सिंह कहते हैं, 'अमृतपाल पंजाब में नशे की हालत देखकर परेशान रहता था। इसलिए वो युवाओं के साथ काम करने लगा। उसे किसान आंदोलन में भी सपोर्ट मिला। इस तरह पूरा पंजाब उसके साथ आ गया।’
'सरकार को ये अच्छा नहीं लगा। सरकार ने उन्हें NSA लगाकर डिब्रूगढ़ भेज दिया। प्रचार के लिए भी पैरोल नहीं दी। उसी सरकार ने दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल को प्रचार करने के लिए पैरोल दे दी।' 'अमृतपाल सिंह पंजाब में नशा मुक्ति के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कई युवाओं को नशे की लत से बाहर निकाला और अमृत चखाया है। वे सिख पंथ के हक की बात करते हैं। ये सरकार को पसंद नहीं आया। अमृतपाल को डिब्रूगढ़ जेल में इसलिए बंद किया, ताकि कोई उनसे कॉन्टैक्ट न कर पाए। अमृतपाल को जेल से निकालने का इकलौता रास्ता चुनाव ही था। ये तरीका कानूनी और लोकतांत्रिक भी है।’
चुनाव में अमृतपाल के प्रचार की कमान परमजीत कौर खालड़ा ने संभाली थी। परमजीत कौर ने 2019 में पंजाब एकता पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं। हम उनसे मिलने अमृतसर पहुंचे। ‘मुझे लगता है कि सिख पंथ में लीडर की कमी है। पंजाब के लोग चाहते हैं कि उन्हें ऐसा लीडर मिले, जो पंथ और पंजाब की बात रख सके। हमने कांग्रेस, अकाली दल, BJP और AAP, सब पर भरोसा करके देख लिया। उन्होंने सिखों के लिए कुछ नहीं किया। पानी, चंडीगढ़, किसान, बंदी सिख जैसे मुद्दों पर कोई बात नहीं करता। अमृतपाल के पूरे प्रचार में हमने यही कहा कि अपने बच्चों को नशे और जेल से बचाने के लिए हमारा साथ दो।’
‘वे नहीं चाहते थे कि सरबजीत सिंह जीतें। सिमरनजीत में अहंकार है। इस वजह से वे इस बार संगरूर से हार गए। वे अमृतपाल के लिए कैंपेन करने नहीं आए, लेकिन अपने पोस्टर पर उन्होंने दीप सिद्धू और अमृतपाल की फोटो लगाई थी। पंजाब की जनता अकेले खालिस्तान के मुद्दे पर वोट नहीं देती है।'‘वारिस पंजाब दे’ के तरनतारन जिला इंचार्ज मजिंदर सिंह कहते हैं, ‘हम पार्टी बनाएंगे या चुनाव लड़ेंगे, इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। अभी संगठन का काम बंद है। सरकार ने संगठन पर बैन लगा दिया था। हमारे सोशल मीडिया अकाउंट्स और...
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