अपने ही देश में 'अदृश्य', भारत में मुसलमान होने के मायने

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भारत के मुसलमान मौजूदा राजनीतिक हालात में अपने आप को कहां देखते हैं? क्या हैं उनके सामने चुनौतियां?

नौ साल के उस बच्चे ने दरवाजा खुलते ही अपनी अम्मी से शिकायत की, "मेरे दोस्तों ने मुझे पाकिस्तानी आतंकवादी कहा."

छोटे-मोटे कारोबार करने वाले मुस्लिमों की दुकानों पर हमले किए गए. मस्जिदों के ख़िलाफ़ याचिकाएं दायर की गईं. इंटरनेट पर ट्रोलिंग करने वालों ने मुस्लिम महिलाओं की बोलियाँ लगाई. ‘बीइंग मुस्लिम इन हिंदू इंडिया’ नाम की किताब के लेखक ज़िया उस्सलाम कहते हैं, "भारत में मुस्लिम दूसरी श्रेणी के नागरिक बन गए हैं. अपने ही देश में वो अदृश्य अल्पसंख्यक बन गए हैं."

ग्रुप के एक मैसेज में कहा गया था, "अगर वो हम पर मिसाइलों से हमला करेंगे तो हम उन्हें घर में घुस कर मारेंगे." पर्यावरण कार्यकर्ता इरम की पांचवीं पीढ़ी आगरा में रह रही है. वो स्थानीय स्कूलों में काम कर चुकी हैं. उन्होंने शहर के बच्चों की बातचीत में बदलाव को महसूस किया है.इरम कहती हैं, "मैं सोच रही हूं अगर ऐसा हो रहा है तो निश्चित तौर पर ये मुसलमानों के प्रति लोगों में गहरे बैठे डर का अक्स है. ये डर एक ऐसी चीज में बदल जाएगा जो आगे जाकर संभाले नहीं संभलेगा.

मुस्लिम समुदाय के कई लोगों ने इस बात पर गौर किया है कि मुसलमान यात्री ट्रेनों से यात्रा करते हुए सावधानी बरत रहे हैं. "उसे डर था कि कहीं मैं बंदूक तो नहीं ले जा रहा हूं. मुझे लगता है कि मेरा नाम जानकर उसे ऐसा लगा होगा." "आप सिर्फ एक या दो घटनाओं के आधार पर ये नहीं कह सकते हैं कि देश की सत्ताधारी पार्टी मुस्लिम विरोधी है. जो लोग इस तरह की घटनाओं को मुसलमानों पर हो रहे हमले के तौर पर दिखा रहे है वो गलत हैं."

ये सच है कि भारत में 2019 लोकसभा चुनाव में सिर्फ नौ फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया और वो लगातार बीजेपी के ख़िलाफ़ गोलबंद होकर वोट दे रहे हैं. जबकि 2020 में नागरिकता कानून के मुद्दे पर दिल्ली में हुए दंगों में 50 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे. हालांकि भारत में आज़ादी से पहले और उसके बाद भी भीषण दंगों का इतिहास रहा है.वो कहते हैं, "मुस्लिमों को अपने अंदर झांक कर देखना चाहिए. वो न तो खुद को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर देखें और न ही धार्मिक नेताओं के असर में आएं."

देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक बिहार की आरज़ू परवीन उन लोगों में हैं जो शिक्षा को गरीबी से बाहर निकलने के रास्ते के तौर पर देखती हैं. आरज़ू ने जब से गांव के शिक्षकों से ये बात सुनी है कि लड़कियां इंजीनियर और डॉक्टर बन रही हैं तब से उसे विश्वास होने लगा है कि उसका सपना भी पूरा हो सकता है.

 

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