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67 सालों के आंकड़ों से समझें, कभी देश की इकलौती राष्ट्रीय पार्टी रही कांग्रेस कैसे खोती गई जनाधार

निलेश कुमार, चुनाव डेस्क, अमर उजाला Published by: Nilesh Kumar Updated Sun, 26 May 2019 08:44 AM IST
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Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
1984 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस ने खोया जनाधार - फोटो : रोहित झा
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साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' में भाजपा को अपार सफलता मिली थी और सत्ता में रही कांग्रेस ने अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन किया था। इस बार नतीजे के एक दिन पहले तक सरकार बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस 'मोदी' नाम की सुनामी में बह गई और 17 राज्यों में खाता भी नहीं खोल पाई। यह वही कांग्रेस पार्टी है, जो एक समय देश की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी और कई आम चुनावों में आराम से जीत दर्ज करती रही। 



साल 1984 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कीर्तिमान स्थापित कर दिया था। इस चुनाव में 415 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास में रिकॉर्ड दर्ज कर चुकी कांग्रेस धीरे-धीरे अपना जनाधार खोती चली जाएगी, ऐसा कांग्रेस ने भी नहीं सोचा होगा। देखा जाए तो साल 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के दौर तक कोई पार्टी कड़ी टक्कर नहीं दे सकी थी। इंदिरा की सरकार गिरी भी तो दूसरी बार जोरदार वापसी हुई, लेकिन पिछले दो चुनावों में कांग्रेस का ऐसा बुरा हाल हुआ कि मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिलना भी मुश्किल हो गया।


आइए देश के पहले आम चुनाव से अब तक हुए चुनावों पर नजर डालते हैं कि कैसे कांग्रेस अपना जनाधार खोती चली गई:
 

1951-52 पहला आम चुनाव: 264 सीटों पर जीती थी कांग्रेस

Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
इलेक्शन
आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव अक्टूबर 1951 से लेकर फरवरी 1952 के बीच हुआ था। पहला लोकसभा चुनाव 489 सीटों पर लड़ा गया था। कांग्रेस के साथ ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय बोल्शेविक पार्टी, जमींदार पार्टी समेत 53 पार्टियां मैदान में थीं। 38 सीटों पर 47 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव में कुल 1874 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे थे। कांग्रेस ने 264 सीटों पर जीत दर्ज की थी और सरकार बनाई थी। भाकपा को 16, सोशलिस्ट पार्टी को 12 और भारतीय जनसंघ को तीन सीटें मिली थी। 

1957 आम चुनाव: कांग्रेस को मिली 371 सीटें

साल 1957 में 494 सीटों पर देश का दूसरा आम चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था। कांग्रेस ने 371 सीटें जीती थी। 542 निर्दलियों ने दूसरा आम चुनाव लड़ा और इनमें से 42 ने जीत दर्ज की, वहीं भाकपा ने 111 प्रत्याशी मैदान में उतारे और 27 पर जीत दर्ज की। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के 194 में से 19 ने चुनाव जीता। वहीं, भारतीय जनसंघ ने 133 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे जिनमें से सिर्फ चार ही जीत दर्ज कर पाए। 
 
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1962 आम चुनाव : 361 सीटें जीत कर इंदिरा गांधी बनी पीएम

Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
1962 का लोकसभा चुनाव
1962 का आम चुनाव पंडित जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के देहांत से लेकर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने का गवाह रहा। कांग्रेस ने 494 सीटों में से 361 सीटें जीती। तीसरे आम चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के खाते में 29 सीटें आई थीं। स्वतंत्र पार्टी को 18, जनसंघ को 14, जबकि सोशलिस्ट पार्टी को 12 सीटों पर जीत मिली थी। 1959 में इंदिरा को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था और इस चुनाव में जीत और प्रधानमंत्री के रूप में आधिकारिक तौर पर भारतीय राजनीति में जोरदार उपस्थिति बनी। 

1967 आम चुनाव: कांग्रेस को मिली 283 सीटें

1967 में हुए चौथे आम चुनाव में कांग्रेस ने 520 सीटों में से 283 सीटें जीतीं। यह पहली बार था जब कांग्रेस को किसी लोकसभा चुनाव में इतना कम बहुमत मिला था। पार्टी का वोट शेयर भी कम रहा। इस लोकसभा चुनाव में 35 सीटें जीतकर 'जनसंघ' तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं 'स्वतंत्र पार्टी' ने 44 सीटें जीती। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने इस चुनाव में 13 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 40.78 फीसदी में ही सिमट गया था और चौथे लोकसभा चुनाव में तीसरे लोकसभा चुनाव के मुकाबले 78 सीटें कम मिली थीं। 
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1971 पांचवा आम चुनाव: इंदिरा विरोध के बावजूद कांग्रेस को मिली जीत

Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
इंदिरा गांधी
1971 में विपक्ष के 'इंदिरा हटाओ' नारे पर इंदिरा गांधी का'गरीबी हटाओ' नारा भारी पड़ा। उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस नेे लोकसभा की 545 सीटों में से 352 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस (ओ) के खाते में  सिर्फ 16 सीटें ही आई। भारतीय जनसंघ ने चुनाव में 22 सीटें जीतीं। सीपीआई ने चुनाव में 23 सीटें जीतीं। जबकि सीपीआईएम के खाते में 25 सीटें आईं। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने दो सीटें जीतीं जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के खाते में 3 सीटें आईं। स्वतंत्र पार्टी के खाते में सिर्फ 8 सीटें आई। 

1977 आम चुनाव: इंदिरा का किला ढहा, मिली मात्र 153 सीटें

23 जनवरी 1977 ही वो दिन था जब अचानक इंदिरा गांधी ने आकाशवाणी के जरिए देश में आम चुनाव की घोषणा की। देश में तीन दिन में ही चुनाव संपन्न हो गए। चुनाव 16 मार्च 1977 से लेकर 19 मार्च 1977 के बीच हुए। 22 मार्च 1977 को आए चुनाव नतीजे ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को मात्र 153 सीटें ही मिली थीं। इस चुनाव में पूरा विपक्ष समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में गोलबंद हुआ था। जनता पार्टी को चुनाव चिन्ह नहीं मिल पाया था, जिसकी वजह से पार्टी ने 'भारतीय लोक दल' के चिन्ह "हलधर किसान" पर चुनाव लड़ा और 298 सीटें जीतीं।

1984 आम चुनाव: 415 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस ने रचा इतिहास

Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
Sikh riots 1984
1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ सीटें मिलीं। इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा हुई हमदर्दी ने राजीव गांधी को सत्ता पर बैठाया। यह चुनाव कांग्रेस पूरी तरह इंदिरा की सहानूभूति पर लड़ रही थी। जबकि विपक्ष के पास इसका कोई तोड़ नहीं था। कांग्रेस ने 401 सीटों का प्रचंड बहुमत हासिल कर इतिहास रचा। यह चुनाव 542 लोकसभा सीटों के लिए हुआ था। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ दो सीटें मिली थीं। यह दोनों सीटें भाजपा के बड़े नेता अटल या आडवाणी ने नहीं जीतीं थी।  यह सीटें गुजरात और आंध्रप्रदेश में जीती गई थीं। उस वक्त कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे। 

1991 आम चुनाव: राजीव गांधी की हत्या के बाद मिलीं 244 सीटें

21 मई 1991 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की वोटिंग के पहले दौर के ठीक एक दिन बाद हत्या कर दी गई। एलटीटीआई ने तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी। इसके बाद जून के मध्य तक चुनाव को स्थगित कर दिया गया। पंजाब में लोकसभा चुनाव बाद में कराए गए, जबकि जम्मू-कश्मीर में आम चुनाव हुए ही नहीं। जून में चुनाव संपन्न हुआ जिसमें कांग्रेस को सबसे ज्यादा 232 सीटें मिलीं। भारतीय जनता पार्टी 120 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। जनता दल को सिर्फ 59 सीटें मिलीं। 21 जून 1991 को कांग्रेस के पी.वी. नरसिंहराव ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
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1996 आम चुनाव: कांग्रेस की सीटें घटी, 140 पर सिमटी 

Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
1998 लोकसभा चुनाव
1996 में 11वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। 161 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 140 सीटें मिली और पार्टी दक्षिण में भी पिछड़ गई। अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला लेकिन बहुमत साबित न कर पाने के कारण 13 दिन ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाए। जनता दल के नेता एचडी देवेगौडा ने एक जून को संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन किया, लेकिन उनकी सरकार भी 18 महीने ही चली। देवेगौड़ा के कार्यकाल में ही विदेश मंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल ने अगले प्रधानमंत्री के रूप में 1997 में पदभार संभाला। कांग्रेस इस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी।

1998 आम चुनाव: 141 पर सिमटी कांग्रेस, भाजपा की सरकार

साल 1998 देश में 12वें लोकसभा चुनाव का गवाह बना। इस चुनाव में भाजपा को 182 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस के खाते में 141 सीटें आईं। सीपीएम ने 32 सीटें जीती और सीपाआई के खाते में सिर्फ नौ सीटें आई। समता पार्टी को 12, जनता दल को 6 और बसपा को 5 लोकसभा सीटें मिली। क्षेत्रीय पार्टियों ने 150 लोकसभा सीटें जीतीं। भाजपा ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, एआईएडीएमके और बिजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई और अटल बिहार वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे, लेकिन इस बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 महीने में ही गिर गई। 

1999 आम चुनाव: 141 से घटकर 114 पर सिमट गई कांग्रेस

Lok sabha Election result 2019: How Congress loses its ground after record with 415 seats in 1984
1999 का लोकसभा चुनाव
साल 1999 के आम चुनाव में कांग्रेस और सिमटी। इस चुनाव में विदेशी सोनिया बनाम स्वदेशी वाजपेयी का माहौल बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा 182 सीटें मिली और वाजपेयी केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रहे, जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 114 सीटें आई थीं। सीपीआई ने चुनाव में 33 सीटें जीतीं। यह पहली बार था जब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में किसी गैर-कांग्रेसी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

2004 आम चुनाव: 145 सीटों के साथ कांग्रेस की सत्ता में वापसी

साल 2004 के 14वें लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का 'इंडिया शाइनिंग' का नारा असफल रहा और कांग्रेस सत्ता में लौटी। कांग्रेस की जीत भाजपा के लिए करारा झटका थी क्योंकि साल 1999 में जीत के बाद पहली बार भाजपा केंद्र में पांच साल सरकार चलाने में सफल रही थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 145 सीटें मिलीं। जबकि भाजपा के खाते में 138 सीटें आई। सीपीएम के खाते में 43 सीटें गई और सीपीआई 10 सीटें जीतने में कामयाब रही। 

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2009 लोकसभा चुनाव
2009 आम चुनाव: 206 सीटों के साथ दोबारा पीएम बने मनमोहन

इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई। सोनिया गांधी के पीएम बनने से इंकार के बाद मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 2009 के 15वें आम चुनाव में कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं और भारतीय जनता पार्टी के खाते में सिर्फ 116 सीटें ही आई। एनडीए फिर से सरकार बनाने में विफल रही। कांग्रेस ने यूपी में 2त1 सीटें जीतीं जबकि भाजपा के खाते में इस सूबे से सिर्फ 10 सीटें ही आई। 

2014 आम चुनाव: कांग्रेस का शर्मनाक प्रदर्शन, विपक्ष को तरसी

2014 में हुए देश के 16वें आम चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई गैर-कांग्रेसी सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। 2014 में एनडीए ने कुल 336 लोकसभा सीटों पर रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी, जिनमें से 282 सीटें अकेले भारतीय जनता पार्टी की थी। वहीं कांग्रेस के लिए यह चुनाव शर्मनाक प्रदर्शन वाला रहा। कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई। 1984 में जहां कांग्रेस ने बहुमत की सरकार बनाई थी, वहीं 2014 में भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई। 

2019 आम चुनाव: 52 सीटों के साथ फिर मोदी सुनामी में बही कांग्रेस

2014 के आम चुनाव में जहां मोदी लहर दिखी थी, तो वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी सुनामी का माहौल बना। 2014 में 44 सीटें लाने वाली कांग्रेस कुछ ही सीटों का इजाफा कर सकी और 52 पर ही पहुंच सकी। शर्मनाक बात यह रही कि देश के 17 राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। 
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