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Azadi Ka Amrit Mahotsav : The legacy saved in the birthplace of Netaji Subhas Chandra Bose, read the special report
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आजादी का अमृत महोत्सव : नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्मस्थली में सहेजी गई विरासत, पढ़ें विशेष रिपोर्ट
आजादी के अमृत महोत्सव के समय हम पीछे मुड़कर देखें कि देश को बनाने में जिन्होंने अपना जीवन दे दिया उनकी विरासत को हमने कितना सहेजा है? उनकी स्मृतियों से हम कितनी शक्ति लेते हैं? इस महत्वपूर्ण अभियान के तहत अमर उजाला ने अपने प्रतिनिधियों को देशभर में भेजा। पिछली कड़ियों में आपने पटेल और नेहरू के जन्मस्थान से रिपोर्ट पढ़ी, इस बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्मस्थली...
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नेताजी सुभाषचंद्र बोस
- फोटो :
Amar Ujala
विस्तार
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नेताजी ने आजादी की लड़ाई को नए आयाम पर पहुंचाया और विदेशी सरजमीं पर दुनिया की दूसरी ताकतों के साथ मिलकर अंग्रेजों को चुनौती दी... महानदी के किनारे पर बसे कटक में जब आप उड़िया बाजार की ओर चलते हैं तो यह सोचना भर ही रोमांचक है कि आजादी की लड़ाई के महान योद्धा की जन्मभूमि से आप रूबरू होंगे...
नेताजी ने आजादी की लड़ाई को नए आयाम पर पहुंचाया और विदेशी सरजमीं पर दुनिया की दूसरी ताकतों के साथ मिलकर अंग्रेजों को चुनौती दी... महानदी के किनारे पर बसे कटक में जब आप उड़िया बाजार की ओर चलते हैं तो यह सोचना भर ही रोमांचक है कि आजादी की लड़ाई के महान योद्धा की जन्मभूमि से आप रूबरू होंगे...
जेल से लेकर रेडियो रुम तक
आजादी की लड़ाई में उनके हर जेल प्रवास की पूरी कहानी संग्रहालय में दर्शाई गई है। एक ब्लॉक को जेल की तरह बनाया भी गया है। बताया गया है कि 17 जनवरी 1941 की सुबह लगभग डेढ़ बजे सुभाष चंद्र बोस मुस्लिम वेशभूषा में घर से निकल गए थे। अंग्रेजों को भनक तक नहीं लगी थी। उनके भतीजे ने उन्हें गाड़ी से छोड़ा और वह लंबी यात्रा करते हुए काबुल तक पहुंच गए। वह अपने साथ बस भगवद् गीता और मां काली की एक तस्वीर ले गए थे।
आजाद हिंद फौज की सरकार के गठन के साथ ही आजाद हिंद बैंक की भी स्थापना की गई थी। उस दौर में 50 लाख की पूंजी के साथ इसे खोला गया। बैंक के सुचारू संचालन के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था। मदद करने वाले लोगों को सेवक-ए-हिंद कहा जाता था।
नवंबर 1943 में नेताजी ने आजाद हिंद की औपनिवेशिक सरकार के लिए राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान तय करने के लिए एक उपसमिति का गठन किया। इस समिति ने तय किया कि बिना चक्र के तिरंगा ही राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर मान्य होगा। एक मुस्लिम युवा हुसैन की लिखी पंक्तियों को राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया। पंक्तियों से नेताजी इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने हुसैन को दस हजार डॉलर इनाम दिया।
दुनिया की पहली महिला रेजिमेंट
आजाद हिंद फौज की महिला रेजिमेंट के तौर पर झांसी की रानी रेजिमेंट का गठन किया गया था। यह दुनिया की पहली महिला रेजिमेंट थी। संग्रहालय में नेताजी के साथ रेजिमेंट की यूनिफॉर्म भी यहां पर सहेज कर रखी गई है। रेजिमेंट के प्रशिक्षण और उससे जुड़े अन्य कर्ताधर्ताओं के बारे में भी इस संग्रहालय में फोटो के माध्यम से बताया गया है।
स्कूल ने सहेज कर रखा है इतिहास
इसी कमरे में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म हुआ था। दूसरे चित्र में संग्रहालय में मौजूद उस दौर की बग्घी।
- फोटो :
Amar Ujala
8 जनवरी 1902 को पांच साल की उम्र से बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल (अब स्टीवर्ट स्कूल) में हुई थी। स्कूल के वर्तमान हेडमास्टर एफसी नोर्थ के अनुसार यहां से कक्षा छह पास करने के बाद कक्षा सात के बीच सत्र में ही रेवेनशा कॉलेजिएट स्कूल में उनका दाखिला करा दिया गया।
रेवेनशा कॉलेजियट स्कूल ने भी सुभाष को पूरी तरह से सहेज कर रखा है। स्कूल के गेट पर उनकी प्रतिमा हो, ऑडिटोरियम या लैब, सबका नाम सुभाष चंद्र बोस पर ही रखा गया है। स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार पिता जानकीनाथ बोस ने 11 जनवरी 1909 को उनका प्रवेश स्कूल में कराया था। कक्षा दस में उनके प्रथम श्रेणी से पास होने का रिकॉर्ड भी स्कूल ने संभाला हुआ है।
कॉलेज की पढ़ाई के दौरान वह भारतीय छात्रों के हक के लिए लड़ते रहते थे। इसी वजह से एक बार उन्हें निष्कासित भी किया गया। इसके बाद इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए इंग्लैंड गए। परीक्षा की मेरिट में उन्होंने चौथा स्थान प्राप्त किया। हालांकि आजादी की लड़ाई में उन्होंने पद ठुकरा दिया था।
गांधी समर्थित प्रत्याशी के खिलाफ जीते थे अध्यक्ष का चुनाव
महात्मा गांधी और सरदार पटेल के साथ सुभाष।
- फोटो :
Amar Ujala
आजादी की लड़ाई के दौरान कुछ ही दिनों में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के बड़े नेता बन गए थे। वह 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1939 में कांग्रेस में उनकी मजबूती इतनी बढ़ी कि वे महात्मा गांधी के समर्थन से खड़े हुए प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव जीत गए थे। वह भी तब, जब बापू ने यहां तक कह दिया था कि उनके प्रत्याशी सीतारमैया की हार उनकी हार होगी।
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गौरव का एहसास...
हॉस्टल में नेताजी सुभाष का कमरा।
- फोटो :
Amar Ujala
सुभाष ने शुरुआती शिक्षा में उड़िया और बंगाली भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। रेवेनशा स्कूल उनके घर से महज तीन किलोमीटर दूर था, इसके बावजूद वह हॉस्टल के कमरा नंबर 11 में रहने लगे। इस स्कूल में हॉस्टल का वह कमरा आज भी है, उसी अंदाज में और बिना किसी बदलाव के। इतना ही नहीं कमरे में पुराना फर्नीचर भी संजो कर रखा गया है। छोटे से कमरे रखे हुए पुराने फर्नीचर पर बैठना भी एक अलग तरह की अनुभूति है।
स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. अनुष्मिता स्वेन बताती हैं कि सरकारी स्कूल होने के बावजूद उनके स्कूल में बड़ी संख्या में छात्रों का प्रवेश होता है। यहां आने वाले हर अभिभावक के मन में यह उत्सुकता रहती है कि बोस इस स्कूल में पढ़े थे। इसी गौरव का एहसास यहां पढ़ने वाला हर एक छात्र भी करता है।
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