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मोदी सरकार का मेडिकल पाठ्यक्रमों के दाखिले में पिछड़ों को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछड़ों अर्थात गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला यूपी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा को लाभ पहुंचा सकता है। अगड़ों व अनुसूचित जाति के साथ पिछड़ों की लामबंदी को तरह-तरह के प्रयोग कर रही भाजपा सरकार का यह निर्णय विरोधी पार्टियों की चुनौती बढ़ाएगा। उन्हें पिछड़ी जातियों खासतौर से उसके युवा वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए पहले से ज्यादा मशक्कत करनी पड़ सकती है। वहीं, उसके अगड़ों खासतौर से ब्राह्मणों को जोड़ने की मुहिम पर भी असर डाल सकती है।
वैसे तो यह फैसला देश भर में प्रभाव डालने वाला है लेकिन विशेष तौर से उत्तर प्रदेश के संदर्भ में इसमें कई राजनीतिक निहितार्थ छिपे हैं। सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी की आबादी में पिछड़ी जातियों की संख्या लगभग 54 प्रतिशत है। वैसे इसमें तेली व जुलाहा जैसी मुस्लिम आबादी भी शामिल है, लेकिन तब भी बड़ी संख्या हिंदू पिछड़ी जातियों की ही है। इनमें कुर्मी, लोध और मौर्य जैसी जातियों का रुझान जनसंघ काल से ही भाजपा की तरफ रहा है। पर, नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बाद इन जातियों की भाजपा से लामबंदी ज्यादा मजबूत हुई। साथ ही गैर यादव अन्य पिछड़ी जातियों का आकर्षण भी भाजपा की तरफ बढ़ा है।
...इसलिए तो नहीं हुआ फैसला
राजनीतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में यादव मतदाताओं का भी कुछ प्रतिशत वोट भाजपा को मिला है। खासतौर से उन सीटों पर जहां सपा की तरफ से मुस्लिम उम्मीदवार थे। केंद्र ने ताजा निर्णय के जरिए भाजपा की ताकत में रीढ़ की हड्डी का काम कर रही सवर्ण व पिछड़ी जातियों को एक बार फिर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वही उनकी सच्ची हितैषी है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एपी तिवारी कहते भी हैं कि इस निर्णय से खासतौर से पिछड़ी जातियों के युवा वर्ग के दिल में जहां भाजपा के हाथों ही अपने हित सुरक्षित होने का तो गरीब सवर्णों के दिल और दिमाग में भी भाजपा के एजेंडे में उनके हितों के भी संरक्षण की चिंता का संदेश जाएगा। इसका चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा।