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जयशंकर ने कहा: एकतरफा इच्छाओं को थोपने से अफगानिस्तान में नहीं आएगी स्थिरता 

एजेंसी, नई दिल्ली Published by: देव कश्यप Updated Thu, 29 Jul 2021 03:21 AM IST
सार

  • विदेशमंत्री ने कहा कि दुनिया अफगानिस्तान को स्वतंत्र, संप्रभु व लोकतांत्रिक देश के तौर पर देखना चाहती है

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MEA S Jaishankar said Imposition of unilateral desires will not bring stability in Afghanistan
एंटनी ब्लिंकन और एस जयशंकर - फोटो : ANI
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विस्तार
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विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में एकतरफा इच्छाओं को थोपने से कभी भी स्थिरता नहीं आ सकती है। उन्होंने यह बात अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही। जयशंकर का बयान अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के साथ चल रही शांति प्रक्रिया में सभी पक्षों को शामिल न किए जाने के संदर्भ में देखा जा रहा है।  



जयशंकर ने कहा कि पिछले दो दशकों के दौरान अफगान सिविल सोसायटी खासकर महिलाओं, अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर जो कुछ हासिल किया, वह स्पष्ट है। अफगानिस्तान को फिर से आतंकवाद का घर नहीं बनने देना चाहिए और न ही शरणार्थियों का स्रोत।


उन्होंने कहा कि दुनिया अफगानिस्तान को स्वतंत्र, संप्रभु और लोकतांत्रिक देश के तौर पर देखना चाहती है लेकिन इसकी आजादी और गवर्नेंस तभी सुनिश्चित होगी जब वह बुरे प्रभावों से मुक्त होगा। उन्होंने कहा कि हमारी नजर अफगानिस्तान, हिंद-प्रशांत और खाड़ी क्षेत्र पर है। उन्होंने कहा कि यह वार्ता ऐसे अहम पड़ाव पर हुई है जब अहम वैश्विक एवं क्षेत्रीय चुनौतियों के प्रभावी निराकरण की जरूरत है। हमारी द्विपक्षीय साझेदारी इस स्तर तक बढ़ी है कि यह हमें बड़े मुद्दों से मिलकर निपटने में सक्षम बनाती है।
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भारत और अमेरिका के रिश्ता दुनिया के सबसे अहम संबंधों में से एक : ब्लिंकन
अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस मौके पर कहा कि दुनिया में कुछ ही ऐसे संबंध है जो अमेरिका भारत के बीच के रिश्ते से अधिक अहम हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया के अग्रणी लोकतंत्रों के तौर पर हम अपने सभी लोगों को स्वतंत्रता, समानता एवं अवसरों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेते हैं। भारत और अमेरिका के कदम ही 21वीं सदी और उसके बाद के दौर का स्वरूप तय करेंगे और यही वजह है कि भारत के साथ साझेदारी मजबूत करना अमेरिका की विदेश नीति की शीर्ष प्राथमिकताओं में एक है।
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जयशंकर और डोभाल से की द्विपक्षीय बातचीत
इससे पहले ब्लिंकन ने विदेशमंत्री जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ता की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ब्लिंकन और जयशंकर की तस्वीर ट्वीट कर लिखा कि दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे सुरक्षा हालात, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने, कोरोना से निपटने के प्रयासों में सहयोग समेत विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक मुद्दों पर चर्चा की। डोभाल के साथ के मुलाकात में दोनों देशों के द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों समेत अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पर बातचीत की।

चीन को नजरअंदाज कर ब्लिंकन ने की दलाई लामा के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात
चीन की आपत्तियों को दरकिनार कर ब्लिंकन ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। इसके मायने हैं कि बाइडन प्रशासन तिब्बत के मुद्दे को अपना समर्थन देता रहेगा। निर्वासित तिब्बत सरकार के अधिकारी न्गोदूप डोंगचुंग ने तिब्बती आंदोलन को लगातार अमेरिकी समर्थन के लिए ब्लिंकन का धन्यवाद किया। 
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सिविल सोसायटी से मुलाकात में अमेरिकी विदेशमंत्री ने कहा, हमारे लोकतंत्र प्रगति कर रहे
सिविल सोसायटी के लोगों से मुलाकात के दौरान ब्लिंकन ने कहा कि हमारे लोकतंत्र प्रगति कर रहे हैं और मित्रों के रूप में हम इस बारे में बात करते हैं क्योंकि लोकतंत्र को मजबूत करने और हमारे आदर्शों को वास्तविक बनाने का कठिन कार्य अकसर चुनौतीपूर्ण होता है। हम जानते हैं कि अमेरिका में, अपने संस्थापकों के शब्दों में, एक अधिक परिपूर्ण संघ बनने की आकांक्षा रखते हैं। हमारा देश पहले दिन से स्वीकार करता रहा है कि हम हमेशा अपने लक्ष्य के करीब होंगे, लेकिन प्रगति करने का तरीका यह है कि उन आदर्शों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा।

कई बार यह प्रक्रिया, दर्द भरी होती है, कई बार कुरूप लेकिन लोकतंत्र की ताकत को इसे अपनाना है। उन्होंने कहा कि भारत में, जिसमें मुक्त मीडिया, स्वतंत्र अदालतें, एक जीवंत और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली शामिल है, जो दुनिया में कहीं भी नागरिकों द्वारा स्वतंत्र राजनीतिक इच्छा की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता साझा करते हैं। यह हमारे संबंधों की बुनियाद का हिस्सा है और भारत के बहुलवादी समाज और सद्भाव के इतिहास को दर्शाता है। नागरिक संस्थाएं इन मूल्यों को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।

उन्होंने कहा कि सफल लोकतांत्रिक देशों में जीवंत नागरिक संस्थाएं शामिल होती हैं और कहा कि लोकतंत्रों को अधिक खुला, ज्यादा समावेशी, ज्यादा लचीला और अधिक समतामूलक बनाने के लिए उनकी जरूरत होती है। उन्होंने कारोबारी सहयोग, शैक्षणिक कार्यक्रम, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संबंधों तथा लाखों परिवारों के बीच संबंधों को समूचे संबंध का प्रमुख स्तंभ बताया।

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