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Yogi Adityanath News: दादा गुरु के संकल्प की सिद्धि के साक्षी बनेंगे योगी आदित्यनाथ

अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Wed, 05 Aug 2020 10:51 AM IST
Yogi Adityanath will witness the accomplishment of Dada Guru's resolve
गोरखनाथ मंदिर - फोटो : अमर उजाला
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राममंदिर आंदोलन में प्रारंभ से ही भागीदार रही गोरक्षपीठ मंदिर निर्माण शुरू होने के क्षण की भी न सिर्फ साक्षी बल्कि भागीदार बनने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों मंदिर निर्माण की शुरुआत के ऐतिहासिक मौके पर योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी भले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते शिष्टाचार का हिस्सा होगी। पर, वह उस समय अपने दादा गुरु दिग्विजय नाथ के संकल्प और गुरु महंत अवेद्यनाथ के स्वप्न के साकार होने के साक्षी बनने का इतिहास भी रचेंगे।



राममंदिर मुद्दे से जुड़ा ऐसा कोई महत्वपूर्ण घटनाक्रम अभी तक नहीं रहा है जिसमें गोरक्षपीठ का प्रतिनिधि सबसे पहली पंक्ति में खड़ा न रहा हो। वह चाहे मंदिर में मूर्तियों के प्राकट्य उत्सव का क्षण हो या रथयात्रा निकालने से लेकर आंदोलन के अन्य महत्वपूर्ण पड़ाव का। ढांचा टूटने का क्षण हो या शिलादान का। हर मौके पर यह पीठ उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती दिखी है।


दिग्विजय नाथ
अतीत के पन्नों में यह बात मोटे अक्षरों में दर्ज है कि 22-23 दिसंबर की रात ढांचे में मूर्तियों के प्राकट्य उत्सव के समय पांच साधुओं की अगुवाई दिग्विजय नाथ ही कर रहे थे। वह उस समय गोरक्षपीठ के महंत थे। उन्होंने राम मंदिर को लेकर देश भर में जनजागरण करने का काम किया। साथ ही पूरी दृढ़ता के साथ अयोध्या के संतों के साथ खड़े रहे। महंत दिग्विजयनाथ के बाद गोरक्ष पीठ की विरासत महंत अवेद्यनाथ को मिली। उन्होंने भी अयोध्या की विरासत और श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ के काम को आगे बढ़ाने का काम किया। मंदिर मुद्दे पर जनजागरण रथयात्राओं से लेकर संत सम्मेलनों, कारसेवा और 6 दिसंबर 1992 को ढांचा ध्वंस के समय वह अग्रिम मोर्चे पर ही डटे दिखे।
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अवेद्यनाथ व परमहंस ने मिलकर इस तरह चलाया मंदिर अभियान
महंत अवेद्यनाथ ने दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्र परमहंस के साथ मिलकर 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। महंत अवेद्यनाथ अध्यक्ष चुने गए। महंत के नेतृत्व में 7 अक्तूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए धर्म यात्रा निकाली गई। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें बताया जाता है कि तीन-चार लाख से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। वर्ष 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज ने  ताला खोलने का आदेश दिया तब भी महंत अवेद्यनाथ और परमहंस वहां मौजूद थे।
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दिल्ली के सम्मेलन में भी भागीदारी 
दिल्ली में 22 सितंबर 1989 को महंत अवेद्यनाथ की अध्यक्षता में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें 9 नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास करने की घोषणा की गई। अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराकर महंत अवेद्यनाथ व महंत परमहंस ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ा। शिलान्यास के बाद मंदिर निर्माण के लिए 30 अक्तूबर 1990 को कारसेवा की घोषणा की गई । प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवा पर प्रतिबंध लगा दिया व अयोध्या की सीमाएं सील करा दीं। भीषण रक्तपात हुआ। इसके बाद 23 जुलाई 1992 को महंत अवेद्यनाथ के नेतृत्व मे संतों और विहिप का एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला। पर, कोई नतीजा नहीं निकला। तब 6 दिसंबर 1992 को फिर कारसेवा की घोषणा की गई। जिस दिन ढांचा गिरा, उस दिन भी महंत अवेद्यनाथ अयोध्या में कारसेवकों के साथ मौजूद थे।

योगी भी पीछे नहीं
महंत अवेद्यनाथ ने 1994 में योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी घोषित किया। योगी भी शुरू से ही हिंदुत्व की राजनीति पर चले। उन्होंने भी दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ और गुरु महंत अवेद्यनाथ की तर्ज पर राममंदिर आंदोलन में भूमिका निभाई। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी ने जिस तरह अयोध्या के विकास से लेकर सरोकारों के विस्तार पर काम किया, उससे उनकी भी अयोध्या के प्रति पर आस्था प्रमाणित होती है। संयोग ही है कि जिस स्थान पर 70 साल पहले उनके दादा गुरु दिग्विजय नाथ प्रभु राम की मूर्ति प्रतिष्ठा के साक्षी व भागीदार बने थे। अब जब सारे विवाद खत्म होने के बाद प्रभु राम के जन्म धाम पर विशाल मंदिर बनने जा रहा है तो उस क्षण के साक्षी व भागीदार योगी आदित्यनाथ बन रहे हैं

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