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कोटा में कातिल व्यवस्था : वार्ड में भर्ती मां की सिसकियां सुन कलेजा फट जाता है...

अरविंद, कोटा Published by: गौरव पाण्डेय Updated Sat, 04 Jan 2020 03:51 AM IST
सार

कोटा संभाग की कुल आबादी करीब 50 लाख है और बच्चों के इलाज के लिए एकमात्र सरकारी अस्पताल जेके लोन है। अस्पताल में शुक्रवार को सन्नाटा पसरा है। हर चेहरे पर डर, भय, खौफ और लाचारी दिख रही है क्योंकि नौनिहालों की मौत ने सभी को तोड़ दिया है। मजबूरी यह है कि इलाज के लिए जाएं तो जाएं कहां? सरकारी अस्पताल मौत दे रहा है और निजी में इलाज करा पाना सबके बस की बात नहीं।

34 kids died in JK Lon Hospital Kota in 106 days due to poor health system
कोटा के अस्पताल में भर्ती बच्चे - फोटो : पीटीआई
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विस्तार
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मासूम बच्चे और बच्चियां मां की कोख से इस दुनिया में तो आए पर निष्क्रिय स्वास्थ्य सेवाओं ने उनसे जीने का अधिकार छीन लिया। वार्ड में अभी कुछ माताएं भर्ती हैं जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को खो दिया है। अब उनकी सिसकियां सुन सभी का कलेजा फट जाता है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के कोटा जिले के सरकारी जेके लोन अस्पताल की जहां 34 दिन में 106 बच्चों की मौत से देशभर में हाहाकार मचा हुआ है।



जिन मां—बाप ने अपने लाडले और लाडो को खो दिया वो अस्पताल और घर में गमगीन बैठे हैं। वहीं प्रदेश की कांग्रेस सरकार और दूसरी विपक्षी पार्टियां बच्चों की मौत पर राजनीतिक रोटियां सेंक रही हैं। सवाल उठता है कि आखिर लचर स्वास्थ्य सेवाओं और बच्चों की मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा? अस्पताल में खराब पड़ी बच्चों की जीवनरक्षक मशीनों का दोषी आखिर कौन है?

जन्म के दो दिन बाद लाडो की मौत, मां को पता नहीं

कोटा के हांडीखेड़ा गांव के रहने वाले देवराज बताते हैं कि 29 दिसंबर को उनकी पत्नी पार्वती ने बेटी को जन्म दिया था। दो दिन बाद उसकी मौत हो गई लेकिन मां को पता नहीं है। लाडो को गोद में रखने तक का मौका नहीं मिला। पार्वती की मां संतोष कहती हैं कि लचर सेवा, टूटी हुई खिड़कियां और कड़ाके की ठंड ने मेरी लाडो को हमसे दूर कर दिया।

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अस्पताल में जानलेवा खामियां

  • शिशु वार्ड में ऑक्सीजन की सप्लाई सेंट्रलाइज नहीं है, जिससे रात को बच्चों को बहुत समस्या होती है।
  • टूटी खिड़कियों से आती है सर्द हवा। ब्लोअर और वार्मर भी नहीं।
  • गायनी वार्ड व सेप्टिक वार्ड में रात्रि शिफ्ट में सिर्फ एक—एक नर्स।
  • रात को सिर्फ रेजिडेंट डॉक्टर, नियमित रूप से वरिष्ठ चिकित्सक भी नहीं।
  • इमरजेंसी के लिए 130 संविदा कर्मियों में से 110 ही काम कर रहे हैं।

 

जिंदगी माटी के मोल

जीवन रक्षक मशीनें स्थिति
19 वेंटिलेटर 10 खराब
71 वार्मर 44 खराब
38 ऑक्सीमीटर 32 खराब
28 नेबुलाइजर 22 बेकार
111 इन्फयूजन पंप 81 बंद
 

सर्द हवा भी बनी दुश्मन

  • दरवीजी गांव की ज्ञानवेंत्रा ने चार दिन पहले बेटे को जन्म दिया। बताती हैं कि टूटी खिड़कियों से आने वाली सर्द हवा और डराती है।
  • काला तालाब की कलावती ने पैंतालीस दिन पहले बच्ची को जन्म दिया। संक्रमण के चलते सेप्टिक वार्ड में भर्ती हैं अभी तक उसके टांके नहीं सूखे हैं।
  • बूंदी की आसमा 18 दिनों से बच्चे के साथ भर्ती थीं हालत बिगड़ी तो गुरुवार को डॉक्टरों ने जयपुर रेफर कर दिया। उसके दादा ने कहा, अस्पताल में संवेदनाएं खत्म हो चुकी हैं।
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