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जन्मदिन विशेषः जब एक फकीर ने मोहम्मद रफी को कही थी ये बात..!

mukesh jha मुकेश कुमार झा
Updated Tue, 24 Dec 2019 04:07 PM IST
Mohammed Rafi Sahab birthday special
मोहम्मद रफी
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आज मखमली आवाज के बेताज बादशाह, पार्श्व गायक मोहम्मद रफी साहब की 95वीं जयंती है। हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध गायक रफी के गाने सुनना उतना ही अच्छा लगता है, जितना भोर के समय कोयल की तान। रफी में वो खासियत थी जिसको पाने कि लिए शायद आज भी लोग लालायित हैं। मस्ती भरा गाना हो या फिर दुख भरे नग्मे, भजन हो या कव्वाली, हर अंदाज में रफी साहब की आवाज दिल को छू जाती है।



रफी साहब के गाए गीत इतने मधुर हैं कि आज भी लोगों के जेहन में बसते हैं। रफी वो कोहेनूर थे जिसके दुनिया से चले जाने के बाद भी उसकी चमक आज बरकरार है। अपनी आवाज की मधुरता से उन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच एक अलग पहचान बनाई।


रफी के गाए हुए रोमांटिक गानों को लोग आज भी गुनगुनाते हैं। रफी का अंदाज-ए-तरन्नुम ऐसा है कि हर एक शख्स उनका दीवाना हो जाता है, इसलिए उन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता है। उनकी आवाज में गजब की अदायगी थी, जिसे कॉपी करना नामुमकिन सा है। 
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रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर, 1924 अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। रफी एक मध्यवर्गीय परिवार से थे। सात वर्ष की छोटी सी उम्र से ही उन्होंने गाना शुरू किया था। ऐसा कहा जाता है कि रफी साहब जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे। फकीर उधर से गाना गाते हुए जाया करता था।
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रफी साहब को उस फकीर की आवाज इतनी पसंद आई कि वो उसकी आवाज की नकल किया करते। एक दिन उनका गाना उस फकीर ने भी सुना। गाने के प्रति रफी की भावना को देखकर फकीर बहुत खुश हुआ और उसने रफी को आशीर्वाद दिया कि बेटा एक दिन तू बहुत बड़ा गायक बनेगा। 

शहंशाह-ए-तरन्नुम की जिंदगी का किस्सा भी बड़ा अजीब

Mohammed Rafi Sahab birthday special
मोहम्मद रफी
शहंशाह-ए-तरन्नुम की जिंदगी का किस्सा भी बड़ा अजीब है। एक बार की बात है कि ऑल इंडिया रेडियो लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक और अभिनेता कुन्दन लाल सहगल गाने के लिए आए हुए थे। रफी साहब और उनके बड़े बाई भी सहगल को सुनने के लिए गए थे। लेकिन अचानक बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। उसी समय रफी के बड़े भाई साहब ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ को शांत करने के लिए रफी को गाने का मौका दिया जाए। यह पहला मौका था जब मोहम्मद रफी ने लोगों के सामने गाया था।

उस समय प्रसिद्ध संगीतकार श्याम सुंदर भी सहगल के गीत को सुनने के लिए आए थे, लेकिन बिजली गुल हो जाने की वजह से उन्होंने सहगल की बजाए रफी को सुना। श्याम सुंदर रफी के गाने से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने रफी साहब को अपने लिए गाने का न्यौता दिया। उस समय के मशहूर संगीतकार नौशाद के संगीत से सजी फिल्म 'अनमोल घड़ी' (1946) के गीत 'तेरा खिलौना टूटा' से रफी को पहली बार मुकाम हासिल हुआ।

शुरुआती दौर में रफी साहब ने शहीद, मेला और दुलारी फिल्म में गाने गाए जो काफी प्रसिद्ध हुए। इसके बाद रफी साहब ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्मों में गाया। रफी की दिलकश आवाज का ही जादू है जो आज भी मुझे उनका गाना गुनगुनाने पर मुझे मजबूर करता है। पेश है मेरे बेहतरीन गायक के गाए हुए खास नग्मे जिनको मैं वक्त-बेवक्त गुनगुनाता हूं...

'कितना प्यारा वादा है इन मतवाली आंखों का
इस मस्ती में सूझे ना, क्या कर डालू हाल मोहे संभाल
ओ साथियां, ओ बेलियां'


दिलकश आवाज के सदाबहार गायक मोहम्मद रफी काफी दयालु इंसान थे। वह कभी भी संगीतकार से ये नहीं पूछते थे कि उन्हें गीत गाने के लिए कितना पैसा मिलेगा। वह सिर्फ आकर गीत गा दिया करते थे और कभी-कभी तो 1 रुपये लेकर भी गीत उन्होंने गाया है। ये रफी की दिलदारी का प्रमाण है। वैसे तो रफी ने हरेक सिंगर के साथ गाना गाया है, लेकिन स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ उनकी जोड़ी कमाल की थी। 

सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर रफी के बारे में कहती हैं...

Mohammed Rafi Sahab birthday special
Mohammed Rafi - फोटो : Social Media
सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर रफी के बारे में कहती हैं, 'सरल मन के इंसान रफी साहब बहुत सुरीले थे। ये मेरी खुशकिस्मती है कि मैंने उनके साथ सबसे ज्यादा गाने गाए। गाना कैसा भी हो वो ऐसे गाते थे कि गाना न समझने वाले भी बरबस वाह-वाह कह उठते। ऐसे गायक बार-बार जन्म नहीं लेते।

मशहूर गीतकार नौशाद ने मोहम्मद रफी के बारे में लिखा था 'गूंजती है तेरी आवाज अमीरों के महल में, गरीबों के झोपड़ों में भी है तेरे साज, यूं तो अपनी मौसीकी पर फख्र होता है, मगर ऐ मेरे साथी मौसीकी को भी आज तुझ पर है नाज।' 

1968 में बनी फिल्म 'नील कमल' का गाना 'बाबुल की दुआएं लेती जा' आज भी लोगों के ज़ेहन में बसता है और जब भी किसी के बेटी की विदाई होती है तो ये गाना अक्सर बजाया जाता है। इस गाने को गाते वक्त बार-बार रफी साहब की आंखों में आंसू आ जाते थे और उसके पीछे कारण था कि इस गाने को गाने के ठीक एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी इसलिए वो काफी भावुक थे, फिर भी उन्होंने ये गीत गाया और इस गीत के लिए उन्हें 'नेशनल अवॉर्ड' भी मिला। ये गीत खासकर मुझे पंसद है, पेश हैं इसकी कुछ पंक्तियां ....

'बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले
मैके की कभी ना याद आए, ससुराल में इतना प्यार मिले
बाबुल की दुआएं...


इस गीत का असर आज भी उतना ही है जितना उस समय में था। लोग अपनी बेटी की बिदाई बेला में और कोई गीत बजाएं या ना बजाएं लेकिन इस गीत को जरूर बजाते हैं। आवाज़ के सरताज मोहम्मद रफी को बेहतरीन गायकी के लिए छह बार फिल्मफेयर और एक बार नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया।

यही नहीं रफी साहब को भारत सरकार कि तरफ से 'पद्म श्री' से भी सम्मानित किया गया। रफी साहब ने हिंदी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में भी गाने गाए हैं। इनमें असमी , कोंकणी , पंजाबी , उड़िया , मराठी , बंगाली , भोजपुरी के साथ-साथ पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश समेत 19 भाषाओं के गाने हैं। उनके नाम लगभग 26 हजार गीत गाने का रिकॉर्ड है।
 
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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