भ्रष्ट पुलिस अफसर दो तरह के होते हैं एक वे जो मांसाहारी होते हैं और दूसरे शाकाहारी। भ्रष्ट पुलिस अफसरों की यह परिभाषा स्पेशल सीबीआई कोर्ट के जज एडीजे डॉक्टर सुशील कुमार गर्ग ने दी है। उन्होंने कहा है कि मांसाहारी अफसर अक्रामकता के साथ अपनी पोजिशन और पॉवर का इस्तेमाल करते हैं जबकि शाकाहारी अफसर केवल भुगतान स्वीकार करते हैं। जज ने यह बातें मंगलवार को चंडीगढ़ पुलिस के पूर्व असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर दविंद्र कुमार के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार के मामले में की। दविंद्र कुमार को 6 साल पुराने इस मामले में 4 साल जेल की सजा सुनाई गई है।

फैसला सुनाते हुए जज ने कहा ‘हमारे देश में भ्रष्टाचार न सिर्फ लोकतांत्रिक सरकार पर खतरा है बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र और रूल ऑफ लॉ को भी प्रभावित करता है। हमारे दैनिक जीवन में बढ़ता भ्रष्टाचार सोशलिस्ट, सेक्युलर लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ असंगत है। भ्रष्टाचार का हमारे मानवधिकार, डेवलेपमेंट, जस्टिस, स्वतंत्रता और समानता जैसे पहलूओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों की व्याख्या की जाए और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को और मजबूत किया जाए।’

जज ने आगे कहा ‘भ्रष्ट पुलिस अफसर दो तरह के होते हैं एक वे जो व्यक्तिगत लाभ के लिए अपनी पुलिस शक्तियों का आक्रमता के साथ इस्तेमाल करते हैं और दूसरे वो जो केवल भुगतान स्वीकार करते हैं। पुलिस फोर्स में भ्रष्टाचार समाज को प्रभावित करता है। इसके साथ ही इससे पॉलिटिकल, इकॉनामिकल और सोशियोलॉजिकल प्रभाव भी पड़ता है।

वहीं जज के फैसला सुनाने के बाद दोषी ने सजा कम करने की गुहार लगाई जिसपर सरकारी वकील कंवर पाल सिंह ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में फैल चुके भ्रष्टाचार पर चोट करने के लिए जरूरी है कि ऐसे पुलिस अफसरों को कड़ी सजा दी जाने की जरूरत है जो कि भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं।

कोर्ट ने दविंद्र कुमार को चार साल की जेल की सजा और 40,000 रुपए का जुर्माना भी लगया है। यह मामला 30 मई 2013 का है। सीबीआई टीम ने एएसआई को गिरफ्तार किया था। सेक्टर 19 पुलिस स्टेशन में तैनात थे। वह 3,500 रुपए की रिश्वत लेने के दोषी पाए गए। शिकायतकर्ता अमनदीप सिंह ने सीबीआई को बताया था कि उसके पार 500 रुपए का नकली नोट था जिसे उन्होंने सेक्टर 20 स्थित एक दुकानदार को दिया था। इसके बाद दुकानदार अमनदीप को एएसआई कुमार के पास लेकर गया जहां पर अमनदीप के खिलाफ एफआईआर दर्ज ने करने के लिए पांच हजार रुपए की मांग की गई लेकिन बाद में 3,500 रुपए की रिश्वत दी गई।