नई दिल्ली
दशहरा की हफ्तेभर की छुट्टी के बाद सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई सोमवार को अंतिम चरण में प्रवेश कर जाएगी और न्यायालय की संविधान पीठ 38वें दिन इस मामले की सुनवाई करेगी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस जटिल मुद्दे का सौहार्दपूर्ण हल निकालने के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया के नाकाम होने के बाद मामले में 6 अगस्त से प्रतिदिन की कार्यवाही शुरू की थी।HC के फैसले के खिलाफ अपील पर हो रही सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है। पीठ ने इस मामले में न्यायालय की कार्यवाही पूरी करने की समय सीमा की समीक्षा की थी और इसके लिए 17 अक्टूबर की सीमा तय की है। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायामूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। इलहाबाद हाई कोर्ट ने चार अलग-अलग सिविल केस पर फैसला सुनाते हुए विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सभी तीन पक्षों, सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान, के बीच समान बंटवारे को कहा था।
पढ़ें, अयोध्या: केस में हिंदू पक्ष की पूरी दलीलें
17 नवंबर तक आ सकता है फैसला
न्यायालय ने अंतिम चरण की दलीलों के लिए कार्यक्रम निर्धारित करते हुए कहा था कि मुस्लिम पक्ष 14 अक्टूबर तक अपनी दलीलें पूरी करेंगे और इसके बाद हिंदू पक्षकारों को अपनी जवाबी दलील पूरा करने के लिए 16 अक्टूबर तक दो दिन का समय दिया जाएगा। इस मामले में 17 नवंबर तक फैसला सुनाए जाने की उम्मीद है। इसी दिन प्रधान न्यायाधीश गोगोई रिटायर हो रहे हैं।
पढ़िए, अयोध्या: मुस्लिम पक्षकारों की अब तक की दलीलें
कब, किसने किया केस
अयोध्या विवाद पर शुरुआत में निचली अदालत में पांच मुकदमे दायर हुए थे। पहला केस एक श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। उन्होंने कोर्ट से हिंदुओं को विवादित स्थल में प्रवेश कर पूजा करने का अधिकार दिए जाने की मांग की थी। उसी वर्ष परमहंस रामचंद्र दास ने भी कोर्ट से पूजा करने की अनुमति देने और राम लला की मूर्ति को केंद्रीय गुंबद, अब ध्वस्त विवादित ढांचे, में रखे जाने की मांग की थी। बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली थी।
वहीं, निर्मोही अखाड़े ने 1959 में निचली अदालत का रुख किया था और 2.77 एकड़ विवादित जमीन के प्रबंधन और 'शेबायती' (सेवक) का अधिकार देने की मांग की थी। इन सबके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंच गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना दावा किया।
फिर 'राम लला विराजमान' ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल और राम जन्मभूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर पूरी विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद इन सभी मुकदमों को इलहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया।
दशहरा की हफ्तेभर की छुट्टी के बाद सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई सोमवार को अंतिम चरण में प्रवेश कर जाएगी और न्यायालय की संविधान पीठ 38वें दिन इस मामले की सुनवाई करेगी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस जटिल मुद्दे का सौहार्दपूर्ण हल निकालने के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया के नाकाम होने के बाद मामले में 6 अगस्त से प्रतिदिन की कार्यवाही शुरू की थी।HC के फैसले के खिलाफ अपील पर हो रही सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है। पीठ ने इस मामले में न्यायालय की कार्यवाही पूरी करने की समय सीमा की समीक्षा की थी और इसके लिए 17 अक्टूबर की सीमा तय की है। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायामूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। इलहाबाद हाई कोर्ट ने चार अलग-अलग सिविल केस पर फैसला सुनाते हुए विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सभी तीन पक्षों, सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान, के बीच समान बंटवारे को कहा था।
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17 नवंबर तक आ सकता है फैसला
न्यायालय ने अंतिम चरण की दलीलों के लिए कार्यक्रम निर्धारित करते हुए कहा था कि मुस्लिम पक्ष 14 अक्टूबर तक अपनी दलीलें पूरी करेंगे और इसके बाद हिंदू पक्षकारों को अपनी जवाबी दलील पूरा करने के लिए 16 अक्टूबर तक दो दिन का समय दिया जाएगा। इस मामले में 17 नवंबर तक फैसला सुनाए जाने की उम्मीद है। इसी दिन प्रधान न्यायाधीश गोगोई रिटायर हो रहे हैं।
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कब, किसने किया केस
अयोध्या विवाद पर शुरुआत में निचली अदालत में पांच मुकदमे दायर हुए थे। पहला केस एक श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। उन्होंने कोर्ट से हिंदुओं को विवादित स्थल में प्रवेश कर पूजा करने का अधिकार दिए जाने की मांग की थी। उसी वर्ष परमहंस रामचंद्र दास ने भी कोर्ट से पूजा करने की अनुमति देने और राम लला की मूर्ति को केंद्रीय गुंबद, अब ध्वस्त विवादित ढांचे, में रखे जाने की मांग की थी। बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली थी।
वहीं, निर्मोही अखाड़े ने 1959 में निचली अदालत का रुख किया था और 2.77 एकड़ विवादित जमीन के प्रबंधन और 'शेबायती' (सेवक) का अधिकार देने की मांग की थी। इन सबके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंच गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना दावा किया।
फिर 'राम लला विराजमान' ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल और राम जन्मभूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर पूरी विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद इन सभी मुकदमों को इलहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया।