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सावधान ! भारत में मनोरोग बढ़ रहा है
Rama Solanki
Published by: रमा सोलंकी
Updated Wed, 09 Oct 2019 05:43 PM IST
दुनिया के करीब एक-तिहाई मनोरोगी भारत और चीन में हैं
साफ तौर पर भारत डिप्रेशन के मुश्किल दौर से गुजर रहा है
ऐसे में मनोरोग के लक्षण को समझना जरूरी हो जाता है
यहां हम बता रहे हैं डिप्रेशन के लक्षण और बचने के उपाय
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भारत डिप्रेशन के मुश्किल दौर से गुजर रहा है
भारत डिप्रेशन के मुश्किल दौर से गुजर रहा है
भारत में मनोरोग एक बढ़ती हुई समस्या है| दुनिया के करीब एक तिहाई मनोरोगी भारत और चीन में हैं और भारत में दस में से महज एक मनोरोगी को इलाज मिलता है | आज डिप्रेशन यानी अवसाद से देश की 9 प्रतिशत आबादी परेशान है और इसके चलते लोग आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठा रहे हैं | डिप्रेशन के लक्षणों को अगर समय से पहचानकर इन्हें दूर करने का प्रयास किया जाए तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है और साथ ही मेन्टल हेल्थ जैसी चुनौतियों को मुंह-तोड़ जवाब भी दिया जा सकता है। बस जरूरत है जागरूकता और एक मजबूत कदम की
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डराने वाले हैं ये आंकड़े
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 45 करोड़ मनोरोगी हैं जिनमें से 17 प्रतिशत लोग चीन के और 15 प्रतिशत भारत के हैं। विकसित देशों की तुलना में भारत और चीन में मनोरोगियों की तादाद बहुत ज्यादा है | सरकार का भी मानना है कि भारत में हर 5 में से एक व्यक्ति को मनोचिकित्सक की सलाह की जरूरत है |
डिप्रेशन के मुश्किल दौर से गुजरता भारत :
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत में 5 करोड़ मानसिक रोगी थे| दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा डिप्रेशन के मरीज भारत में ही रहते हैं |
भारत में 3 करोड़ लोग एंग्जाइटी यानी घबराहट के शिकार हैं, एंग्जाइटी का शिकार व्यक्ति कई बार आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेता है | डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2005 से 2015 तक पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या 18.4 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है और दुनियाभर के 50 प्रतिशत लोग भारत और चीन में रहते हैं |
पूरी दुनिया में होने वाली कुल मौतों में आत्महत्या की हिस्सेदारी 1.5 प्रतिशत है |
डिप्रेशन के 78 प्रतिशत मरीज निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं |
वर्ष 2012 में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भारत में हुई थीं |
2015 के मुकाबले 2016 में भारतीयों ने डिप्रेशन की दवाएं ज्यादा खाईं |
वर्ष 2015 के मुकाबले 2016 में डॉक्टरों ने एंटी डिप्रेशन दवाओं के 14 प्रतिशत पर्चे ज्यादा लिखे |
( स्रोत डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट )
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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के मुताबिक भारत में हर 20 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी तरह के डिप्रेशन का शिकार है |
भारत अपने स्वास्थ्य बजट का सिर्फ 0.06 % मानसिक बीमारियों से लड़ने पर खर्च करता है, जबकि बांग्लादेश तक अपने स्वास्थ्य बजट का 0.44 प्रतिशत मानसिक बीमारियों से लड़ने पर खर्च करता है |
देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2015 में लोकसभा में स्वयं बताया था कि हमारे पास
3800 मनोचिकित्सक हैं
898 क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं
850 मनोवैज्ञानिक सोशल वर्कर हैं
1500 मनोवैज्ञानिक नर्सें हैं
भारत में करीब दस लाख लोगों पर करीब एक मनोचिकित्सक है, जबकि कॉमनवेल्थ मानकों के अनुसार प्रति एक लाख लोगों पर 5.6 मनोचिकित्सक होने चाहिए |
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ये आंकड़े देखकर आराम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत को व्यवस्था और जमीनी स्तर पर कमर कसने की जरूरत है। वर्ष 2014 में भारत ने इस तरफ एक बड़ा कदम उठाया था " मेन्टल हेल्थ बिल " को लेकर जिसके अनुसार -
मानसिक रोगियों का अमानवीय तरीके से इलाज अपराध माना जायेगा
बाल रोगियों को शॉक थैरेपी देने पर रोक लगाई गयी
अधिक उम्र के रोगियों पर इसका इस्तेमाल डिस्ट्रिक्ट मेडिकल बोर्ड की अनुमति के बाद ही किया जा सकेगा, पर एनेस्थीसिया देने के बाद ही |
इस कानून के तहत मनोरोग से ग्रस्त लोग अपने इलाज का तरीका खुद तय कर पाएंगे |
नए कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति भरी तनाव के चलते आत्महत्या करेगा तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जायेगा | इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 309 के तहत अब एक साल तक की जेल में नहीं भेजा जायेगा |
भारत के इतिहास में इस क़ानून के तहत पहली बार आत्महत्या की कोशिश को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया, जबकि अभी तक ब्रिटिशकालीन समय से ही आत्महत्या को अपराध माना जाता रहा था | इसका अर्थ बिल्कुल स्पष्ट था कि भारत सरकार ने आत्महत्या को मनोरोग के तौर पर स्वीकार किया|
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- फोटो :
social media
ऐसे में आप कैसे समझें कि कोई व्यक्ति मनोरोग की तरफ बढ़ रहा है -
मनोरोग यानी अवसाद को समझने के लिए बेहद जरूरी है इसके लक्षणों को समझना,
चिड़चिड़ापन रहना
ठीक से नींद न आना
कम भूख लगना
अपराध बोध होना
बिना वजह दुखी महसूस करना
हर समय उदास रहना
आत्मविश्वास में कमी
थकान महसूस होना और सुस्ती
उत्तेजना या शारीरिक व्यग्रता
मादक पदार्थों का सेवन करना
एकाग्रता में कमी
खुदखुशी करने का ख्याल आना
किसी काम में दिलचस्पी न लेना
व्यक्ति के मूलभूत व्यवहार में अंतर दिखायी देना
अकेले रहना, बातचीत से बचना
दो-चार हफ्तों से ज्यादा अगर ऐसा हो तो जरूर इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए और उचित कदम उठाने चाहिए |
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डिप्रेशन
डिप्रेशन से बचने के उपाय :
यदि डिप्रेशन से बचना है तो सबसे पहले इस बारे में खुलकर बात करें। रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव करे और स्वयं को व्यवस्थित करे अपनेआप को समय दें।
यह होगा कैसे
बात करें, मदद मांगें और प्रियजनों के संपर्क में रहें
सेहतमंद खाना खाएं और रोजाना व्यायाम करें
रचनात्मक कार्यों में मन लगाएं
अच्छा संगीत और किताबों को दोस्त बनाएं
नकारात्मक लोगों से दूरी बनाएं
अपनी नींद पूरी करें
वर्तमान में जिएं और पुरानी बातों के बारे में न सोचें
खुद को लोगों से दूर न करें
मनोचिकित्सक से सलाह लें और अवसाद को दूर भगाने के लिए खुलकर बात करें |
भारत में मानसिक रोगों का इलाज करने वाले सिस्टम को पहले खुद का इलाज करना होगा, मगर शुरुआत अपने-आप से करें, हिम्मत नहीं हारें और अपनी जिंदगी से प्यार करें, डिप्रेशन आपको डरा सकता है मगर हरा नहीं सकता |
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